एनसीयूआई के निवर्तमान शासी परिषद के सदस्य अशोक दबास ने आरोप लगया है कि चंद्रपाल सिंह और उनकी टीम मिलकर एनसीयूआई में 16 मार्च को होने वाले चुनाव में हेरा-फेरी कर रही है। वहीं चंद्रपाल सिंह ने इन आरोपों को बेबुनियाद ठहराते हुए कहा है कि दबास फालतू की अफवाहें फैला रहे है क्योंकि उन्हें लगता है कि इस बार उनके हाथों से सदस्यता छिन जाएगी।
दबास ने कहा कि चुनाव अधिकारी वी.पी.सिंह एनसीयूआई के अध्यक्ष चंद्र पाल सिंह यादव की व्यक्तिगत पसंद है। भारतीय सहकारिता से यादव ने इस वाक्य को सिरे से खारिज किया और कहा कि सभी शासी परिषद के सदस्यों को पता है कि यह बोर्ड का प्रस्ताव था और इस मुद्दें मैं मुझे कोई स्पष्टीकरण देने की जरूरत नहीं है। आप चाहें तो किसी भी सदस्य से पूछ सकते है।
लखन लाल साहू के मुद्दे पर दबास ने कहा कि साहू को एक नियोजित तरीके से मतदाता सूची से हटाया गया और यहां तक की साहू को अदालत में जाने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं दिया गया। इसका जवाब देते हुए चंद्र पाल ने कहा कि वैसे तो इस मामले में चुनाव अधिकारी के बोलने का हक है लेकिन मुझे इस बात की थोड़ी जानकारी है। यादव ने अागे जो़ड़ते हुए कहा कि खंड 38 (2) और (3) के तहत जहां बोर्ड नहीं होता वहां प्रशासक संस्था का प्रतिनिधित्व करता है।
साहू के मामले में बोर्ड का कोई संकल्प नहीं था और इसी कारण उनकी उम्मीदवारी को स्वीकारा भी नहीं गया। इसके बावजूद भी उन्होनें फार्म भारा, मैं इस मामले मे चुनाव अधिकारी द्वारा लिए गए कदम का समर्थन करता हूं, उन्होनें जोड़ा।
दबास ने आरोप लगाया था कि एनसीयूआई के अधिकारी एनसीयूआई के अध्यक्ष के इशारों पर चल रहे है। सहकारी समितियों से एक लाख रूपए तक की बकाया राशि नकदी के रूप में लिया गया जब्कि नियमानुसार बीस हजार से अधिक की राशि चेक या बैंक ड्राफ्ट के रूप में नहीं ली जानी चाहिए थी।
“ऐसा नियम कहां है?” हमने अपने उपनियमों का अध्यन किया है और कहीं भी इस तरह का कुछ नहीं लिखा है। वह सब हमारे सदस्य है और अगर वे अंतिम क्षणों में भुगतान कर रहे है तो क्या दिक्कत है, चंद्र पाल ने प्रतिवाद किया।
चुनाव की तारीख करीब आते-आते आरोपों और प्रत्यारोपों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। दबास मौजूदा शासन पर पारदर्शिता और निष्पक्ष तरीके के हनन का आरोप लगा रहे है तो लो उन्हे उस लोमड़ी से तुलना कर रहें है जिसने कहा था कि अंगूर खट्ठे हैं।