गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने देश की सबसे बड़ी डेयरी सहकारी-जीसीएमएमएफ के अपदस्थ अध्यक्ष विपुल भाई चौधरी को हटाने के फैसले को कायम रखा। इससे विपुल डर सही साबित हुआ।
श्री विपुल को यह त्वरित दूसरा झटका है। इसके एक सप्ताह पहले राज्य सहकारी रजिस्ट्रार ने उन्हे मेहसाणा दूध संघ से हटाने का आदेश दिया था सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिलना लंबित है।
यद्यपि विपुल शिविर ने कपिल सिब्बल और एच अहमदी जैसे दिग्गज वकीलों को नियुक्त किया था, शीर्ष अदालत ने संक्षेप में इस निर्णय पर पहुंचने में सहकारी भावना को महत्व दिया। देश के सर्वोच्च न्यायालय आईसीए सहकारी पहचान की परिभाषा और 97वाँ संविधान संशोधन के पीछे की भावना को निर्णय पारित करते समय ध्यान में रखा।
हमेशा की तरह विपुल चौधरी से संपर्क नहीं किया जा सका। उनके करीबी सहयोगी श्री यूसुफ पुरथुर्किट्टन ने कहा कि वह निराश हैं। भारतीय सहकारीता॰कॉम को भेजे एक मेल में श्री जोसफ ने जवाब दिया-“एक उम्मीद थी कि माननीय सुप्रीम कोर्ट गुजरात सहकारी सोसायटी अधिनियम के प्रावधानों और जीसीएमएमएफ के बाईला को तवज्जो देगा जिसमें निर्वाचित मानद अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का कोई प्रावधान नहीं है।
इस फैसले के साथ ही विपुल चौधरी और जीसीएमएमएफ के बीच लंबी कानूनी लड़ाई का अंत हो गया। पाठकों को मालूम होगा कि डेयरी कीमत पर अपने राजनीतिक आकाओं को रिझाने के लिए विपुल के फैसले के बाद जल्द ही जीसीएमएमएफ के साथ जुड़े कई दुग्ध संघ उनके खिलाफ एकजुट हो गए। उन्हें उनकी निरंकुश शैली पर आपत्ति थी।
अधिकांश दुग्ध संघों ने बोर्ड की बैठक से विपुल के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करने की मांग की जिसे विपुल ने किसी न किसी बहाने लाल दिया। अंत में पहले वह गुजरात हाई कोर्ट से और फिर सुप्रीम कोर्ट से उसे हटा दिया गया।