प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रविवार को की गई “मान की बात” का किसानों ने उत्साह के साथ स्वागत किया।
कई कॉरपोरेटर, जो खेत और किसानों से जुड़े हुये हैं, उन्हें भी प्रधानमंत्री मोदी के सीधा किसानों से बात करने की पहल का स्वागत किया है।
एनसीयूआई के पुनः निर्वाचित अध्यक्ष डॉ चंद्र पाल सिंह यादव, जो कर्नाटक और गुजरात के दौरे पर है, उन्होंने भारतीय सहकारिता को फोन पर बताया, “हम वास्तव में प्रधानमंत्री की इस पहल का स्वागत करते हैं लेकिन हम चाहेंगे कि वे जो कहते हैं उसे व्यवहार में लाया जाये। भारत मुख्य रूप से किसानों का देश है और किसान इस देश में सदियों से दयनीय हालत में रह रहें हैं”।
एनसीयूआई के अध्यक्ष ने कहा कि अगर हम सहकारी आंदोलन को सार्थक रूप से मजबूत करतें हैं तो किसानों की ज्यादातर मुसीबतों का हल हो सकता है। इस अवसर पर उन्होनें प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि आयकर, सेवाकर और अन्य प्रतिबंध, जिनसे सहकारी आंदोलन पर प्रतिकूल असर पड़ता है, उन सभी को वापस लेने की बहुत आवश्यकता है।
राज्य सभा सांसद यादव ने हाल ही में एक संसदीय बहस में किसानों का पुरजोर समर्थन किया था। गांवों में किसानों की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए यादव ने कहा कि किसानों की दशा मनरेगा मजदूरों से भी बदतर है।
इफको के प्रबंध निदेशक और किसानों के पैरोकार डॉ यू.एस.अवस्थी ने मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रधानमंत्री के बयान की सराहना की। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के वक्तव्य को पुनः ट्वीट किया जिसमे उन्होंने मृदा स्वास्थ्य कार्ड और मिट्टी के पोषक तत्वों को समृद्ध बना कर उपज में वृद्धि करने की बात कही।
इफको और अवस्थी मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखने में बराबर रूचि रखते हैं। अवस्थी खुद दुरदराज क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं और किसानों को रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के नुकसान के बारे में समझा रहे हैं।
देश की सबसे बड़ी सहकारी डेयरी- अमूल के एम.डी. श्री आर.एस सोढ़ी भी प्रधानमंत्री की इस पहल पर बहेद खुश हैं और उन्होंने कहा कि भाषण का अध्ययन करने के बाद ही मै अपनी विस्तृत प्रतिक्रिया दे सकता हूं।
मोदी की “मन की बात” कार्यक्रम को मिलने वाले समर्थन से गदगद होकर श्री मोदी ने बात के आरंभ में कहा, “मैनें कभी उम्मीद नहीं की थी कि इस कार्यक्रम को लेकर मुझे इतने सारे सवाल प्राप्त होंगे”।
मोदी ने कहा कि देश में अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए नियमों-कानूनों के तहत 60 वर्षों तक शासन होता रहा है। नए कानूनों को लागू करने के समय पता चला कि समस्या है।
हालांकि उनकी मन की बात राजनैतिक मकसद के बिना नहीं है। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान किसानों को पुराने कानून की व्यवस्था से जरा भी अधिक मुआवज़ा नहीं मिलता। अब मुआवज़ा निश्चित है।
प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि जब भी कोई प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा, जितना जरूरी होगा उतनी ही जमीन का अधिग्रहण होगा। कृषि भूमि का अधिग्रहण केवल अंतिम उपाय के रूप में होगा।
आगे मोदी ने कहा कि हम बिल में संशोधन करने के लिए तैयार हैं। विपक्षी पार्टियों के इच्छानुसार परिवर्तन किया जाएगा।