कैग की रिपोर्ट से केंद्र सरकार द्वारा कृषि योजनाओं में लापरवाही बरतने का मामला प्रकाश में आया हैं। इस घोटाले से जिस तरह सहकारी समितियों को नुकसान हुया है उसी तरह कृषि क्षेत्र को भी हानि हुई है और सहकारी आंदोलन के विकास की गति धीमी हो गई है जिसे कैग की रिपोर्ट से समझा जा सकता है।
भारत के नियंत्रक और महालेखा परिक्षक(कैग) ने बताया कि कृषि मंत्रालय की प्रमुख योजना राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) में 393 परियोजना में 38 प्रतिशत यानि 2,287 करोड़ की राशि सही परिणाम नहीं दे रही है, बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार।
कैग की रिपोर्ट के इस खुलासे से की आरकेवीवाई योजना के कार्यान्वन में राज्य सरकार की भूमिका संदिग्ध है और एनडीए सरकार इस योजना के आधार पर केंद्रीय आवंटन में कटौती कर सकती है।
योजना का प्रमुख उद्देश्य राज्यों के खेत के विकास में वार्षिक चार फीसदी का इजाफा करना है। 2007-08 से 2012-13 वर्ष के दौरान कुल 4,000 परियोजनाओं लागू हुयी है जिनमें से कैग ने 393 परियोजना का लेखा परिक्षा किया है, बिजनेस रिपोर्ट के अनुसार।
सीएजी ने देखा कि जिला स्तर की परियोजनाओं का ढांचा सही ढंग से तैयार नहीं किया गया और धन का आवंटन भी योजनानुसार नहीं किया गया है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत 60,000 दालों के गांवों, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन आदि का विकास करना है, जिसमें अनियमितताएं पाई गई हैं।
लेखा परिक्षक आधिकारी ने एक मामले में देखा कि 11 राज्यों में 759.03 करोड़ रूपए की राशि बिना किसी उपयोग के बही खाता और जमा खातों में दिखाई गई है। उत्तर प्रदेश में कैग ने देखा कि बुआई खत्म होने के बाद लगभग 61 करोड़ के 1,00,000 बीज को किसानों को वितरित किया गया।
वित्तीय कुप्रबंधन के अन्य मामलों के आलवा आरकेवीवाई में सार्वजनिक धन का कुप्रबंधन देखा गया है जैसे कैग ने पाया कि पिंजरों से मछली पकड़ने को पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ावा दिया जा रहा है जो इस जगह के लिये अनुकूल नहीं है और इससे भारी नुकसान हो सकता है।