गुजरात सरकार द्वारा राज्य की 100 सहकारी संस्थाओं में संरक्षकों की नियुक्ति के कदम से गुजरात सरकार कानूनी लड़ाई में उलझ गई है। गौरतलब है कि गुजरात उच्च न्यायालय ने सहकारी सोसायटी अधिनियम में किये गए संशोधन के खिलाफ दायर याचिका पर गुजरात सरकार से जवाब मांग है।
इस मामले की अगली सूनवाई 22 जून को होनी है, इस विषय में कोर्ट ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार का संशोधन संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के नकार के बराबर है।
पाठकों को याद होगा कि गुजरात सरकार द्वारा सहकारी समितियों में सरंक्षक की नियुक्ति ने पूरे सहकारी क्षेत्र में दुविधा जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी है। सरकार द्वारा गुजरात सहकारी सोसायाटी अधिनियम 2015 में लाये गये संशोधन को विपक्ष दल सहकारी संस्थाओं से काग्रेंस नेताओं को निकाल बाहर करने के कदम के रूप में देखता है। 100 सहकारी संस्थाओं में नातू पटेल और जाने माने कॉपर्रेटर विपुल चौधरी जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेता है।
राज्य की सहकारी संस्थाओं और सहकारी बैंक जिनमें अभी तक चुनाव नहीं हुये है, उन संस्थाओं पर कढ़ा रूख अपनाते हुए गुजरात सरकार ने संस्थाओं में चुनाव प्रक्रिया को आरंभ कराने के लिए “संरक्षक” की नियुक्ति की घोषणा की थी।
बाद में गुजरात सरकार ने राज्य की सहकारी संस्थाओं और बैंको में संरक्षक की नियुक्ति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने का निर्णय लिया ।