सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ ने नई दिल्ली स्थित अपने मुख्यालय में हर साल की तरह इस साल भी जुलाई माह का पहला शनिवार अंतरराष्ट्रीय सहकारी दिवस के रूप में मनाया है। इस बार का विषय “सहकारिता चुने, चुने समानता” था।
इस मौके पर उपस्थित सहकारी संस्था एनसीयूआई के उपाध्यक्ष बिजेन्द्र सिंह ने कहा कि हमें सरकार पर निर्भर रहने की बजाए लोगों को समानता को बढ़ावा देकर गरीबों की मदद करने की पहल करनी चाहिए।
इस कार्यक्रम में इफको के तरूण भार्गव, एनसीयूआई के अधिकारियों, श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स के छात्रों सहित अन्य लोगों ने शिरकत की।
एनसीयूआई के उपाध्यक्ष ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी सहकारी समारोह में श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स की प्रोफेसर ने वक्ता के रूप में भाग लिया है और यह हमारे लिए गर्व की बात है।
अंतरराष्ट्रीय सहकारी दिवस का आयोजन हर साल जुलाई माह के पहले शनिवार को किया जाता है। इस दिन का उद्देश्य सहकारिता को मजबूत और सशक्त बनाना है। इस अवसर पर आईसीए ने अपने सदस्य सोसायटियों से सहकारी आंदोलन को सशक्त और मजबूत बनाने की अपील की है।
बिजेन्द्र सिंह ने विषय के संबंध में कहा कि हर इंसान में बहुत सी कमियां होती है, सिंह ने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि मैंने 300 से 400 बच्चों को रोजगार का अवसर प्रदान करवाया लेकिन मैंने कभी रिशवत नहीं ली, फिर भी मैं भ्रष्टाचारी हूं, क्योंकि मैंने उन बच्चों को मेरिट के आधार पर रोजगार प्रदान नहीं करवाया इसलिए पहले हमें खुद को सुधारने की जरूरत है बाद में समाज को सुधारना होगा।
इफको के प्रबंध न्यासी श्री जे.एल.एन श्रीवास्तव ने कहा कि बिजेन्द्र सिंह सहकारिता के स्तंभ है, इन्होंने सहकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।
उन्होंने चित्र प्रतियोगिता पर कहा कि चित्र कला से दुनिया के इतिहास, सांस्कृति की पहचान हुई क्योंकि चित्रों के माध्यम से ही हमें पता चला कि सभ्यता क्या थी, देश में विकास कैसे हुआ आदि बच्चों के लिए चित्र प्रतियोगिता का आरंभ करना और उनकी रचनात्मकता को देश के सामने रखने के लिये मैं एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी डॉ दिनेश को धन्यवाद देता हूं।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय सहकारी दिवस समारोह में चित्र प्रतियोगिता पर आधारित एक कार्यक्रम छोटे बच्चों के लिए आयोजन किया गया था, इस चित्र प्रतियोगिता में करीब 60 बच्चों ने भाग लिया था।
उन्होंने समानता के विषय पर कहा कि संविधान में समानता मौलिक अधिकार है, "कानून के समक्ष समानता" की बात करें तो क्या आज समानता है,हर व्यक्ति भेद-भाव, जाति-पांति में फंसा हुआ हैं। श्रीवास्तव ने आगे कहा कि हमें सहकारी आंदोलन में महिलाओं को कैसे जोड़ा जाए और उन्हें सशक्त कैसे बनाए जाए इस विषय पर विचार करने की जरूरत है।
इस अवसर पर अंतरराष्ट्रीय सहकारी अलायन्स -एशिया पैसेफिक की सलाहकार सावित्री सिंह ने कहा कि सहकारी आंदोलन के माध्यम से देश में गरीबी को खत्म किया जा सकता है, क्योंकि हरित क्रांति, सफेद क्रांति में सहकारिता की अहम भूमिका रही है। सिंह ने कार्यक्रम के दौरान एक प्रेजेंटेशन दिखाई जिसमें उन्होंने भारतीय आय पिरामिड, समानता, कैसे अमीर देश गरीब देशों का शोषण कर रहे हैं, आदि के बारे में समझाया।
सावित्री ने कहा कि सहकारी जाति, धर्म, रंग को नहीं मानता। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव "बान की मून" का संदेश पढ़ते हुये सावित्री ने कहा कि सहकारिता कृषि, खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास के लिए बहुत जरुरी है, सावित्री ने कहा कि उनका सहकारिता के प्रति दो शब्द कहना हमें सशक्त बनने की ओर प्रेरित करता है।
उन्होंने कहा कि 2015 के विषय का मतलब सतत विकास के लिए सहकारिता का उपयोग किया जाए। सहकारिता ही असमानता को दूर करके लोगों के प्रति समानता की भावना उत्पन्न कर सकती है और समाज, देश को सशक्त बना सकती है। सहकारी निचले स्तर के लोगों को उच्च स्तर पर लाने का प्रयास हमेशा करती रहती है।
फिशकॉपफेड के प्रबंध निदेशक श्री बी.के.मिश्रा ने कहा कि देश में छह लाख सहकारी समितियां है जिसके लगभग 25 करोड़ सदस्य है, सहकारिता जन आंदोलन है और मेरा लिए जिंदगी जिने की कला है। सहकारी आंदोलन से महिलाओं को जोड़ा जाए। सहकारिता समाज के गरीब लोगों के हित में कार्य करती है।
मिश्रा ने कहा कि नीली क्रांति सहकारिता के माध्यम से देश में हो सकती है। युवाओं को सहकारिता से जोड़ा जाए।
देश में मत्स्य पालन क्षेत्र की तुलना में कृषि क्षेत्र को ज्यादा महत्व दिया जाता है। कृषि क्षेत्र के लिये कई योजनाएं बनाई गई लेकिन मत्स्य पालन क्षेत्र के लिए कोई योजना नहीं, उन्होंने पूछा कि योजनाएं बनाने में असमानता क्यों की जाती है, जबकि मछुआरे अपना जीवन जोखिम में डालकर मछली पकड़ते है इसलिए सबसे पहले हमें असमानता को खत्म करना होगा।
श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स की प्रोफेसर डॉ मलिका कुमार ने कहा कि सहकारी साथ मिलकर कार्य कर रही है, यह देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा।“सहकारिता सबके लिये है, सब सहकारिता के लिये है”।
सहकारिता ने समानता को बढ़ावा देने ने अहम भूमिका निभाई है। जब हम समानता की बात करते है तो इसका मतलब ग्रामीण समानता, अर्थिक समानता आदि है।
सहकारी आंदोलन में महिलाओं को जोड़कर सहकारी संस्था उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास कर रही है, उदाहरण के लिये अमूल, लज्जित पापड़, महिला सहकारी बैंक आदि।
सहकारिता लोकतंत्र का सिद्धांत जिसमें सहकारिता लोगों के लिए, लोगों द्वारा, लोगों की सहकारिता पर कार्य कर रही है। सहकारी आंदोलन में युवाओं की भागीदारी की बहुत आवश्यकता है।
सहकारिता के विकास के लिये लोगों को सहकारिता के सिद्धातों के बारे में जागरूक करने की जरूरत है तभी सहकारी आंदोलन को सशक्त बनाया जा सकता है।
डॉ दिनेश ने इस मौके पर धन्यवाद प्रस्थापना रखा।