भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर आर.गांधी की शहरी सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक संस्थाओं में परिवर्तन करने की सिफारिशों के विरोध के बावजूद इस प्रस्ताव को लेकर बड़े सहकारी बैंकों में सावधानी बरती जा रही है।
भारतीय सहकारिता से बातचीत में नेफ्कॉब के अध्यक्ष डॉ मुकुंद अभ्यंकर ने कहा कि “हम फैसले का इंतजार कर रहे है”।
गौरतलब है प्रस्ताव अभी तक भारतीय रिजर्व बैंक के पास लंबित है और अगले साल इसे पेश किया जाने की संभावना है, अभ्यंकर ने रेखांकित किया।
पाठकों को याद होगा कि आरबीआई की हाई पावर्ड कमेटी की सिफारिशों जिसमें सहकारी बैंकों जिनका कारोबार 20 हजार करोड़ या उससे अधिक है, को निजि बैंकों में तबदील करने की बात कही थी।
सहकारी नेताओं का कहना है कि शहरी सहकारी बैंकों को पूरी क्षमता से विकसित करने की अनुमति दी जानी चाहिए और सहकारी बैंको के ऊपर लगाई गई पाबंदियों को खत्म किया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर सहकार भारती के पूर्व अध्यक्ष सतीश मराठे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था। हम नए शहरी सहकारी बैंकों को लाइसेंसिंग के पक्ष में है, उन्होंने कहा।
शहरी सहकारी बैंकों का व्यापार 12 करोड़ की गतिविधियों तक ही समिति नहीं किया जाना चाहिए। बैंकों को सड़क निर्माण जैसे अन्य गतिविधियों में भाग नहीं ले सकते।
अभ्यंकर ने सारस्वत बैंक का हवाला देते हुए कहा कि हम अपने “बड़े भाई” के कदम पर निगरानी रख रहे हैं। हमारा (कॉसमॉस सहकारी बैंक) व्यापार 26 हजार करोड़ रुपये का है जबकि सारस्वत बैंक का कारोबार 43 हजार करोड़ रुपये का है।
पाठकों को याद होगा कि स्वर्गीय एकनाथ ठाकुर के कार्यकाल के दौरान सारस्वत बैंक को निजि बैंक में परिवर्तित करने पर विचार-विमर्श हुआ था।
लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। सारस्वत बैंक के नए अध्यक्ष शखारकर और नई बोर्ड ने अपना रवैया साफ नहीं किया हैं। सारस्वत बैंक के अध्यक्ष से संपर्क करने के प्रयासों का कोई फायदा नहीं हुआ।