भारतीय सहकारिता को सूत्रों ने बताया कि हालांकि यह मुद्दा एजेंडे में नहीं था, इसे एक अतिरिक्त एजेंडा के रूप में पेश किया गया। गौरतलब है कि दिनेश का कार्यकाल इस साल अप्रैल में समाप्त हो रहा है।
सूत्रों का कहना है कि अधिकारियों के साथ-साथ मुख्य कार्यकारी को बोर्ड में इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद वहां से चले जाने को कहा गया। यह माना जाता है कि बोर्ड के सदस्य चाहते थे कि एनसीयूआई के अध्यक्ष डॉ चंद्र पाल सिंह यादव ही इस मुद्दे पर फैसला ले। लेकिन डॉ चंद्र पाल सिंह यादव ने इस जिम्मेदारी को लेने से साफ इनकार कर दिया था।
इस बीच, डॉ दिनेश के विरोधियों ने इनको विस्तार नहीं मिले इसके लिए अभियान शुरू कर दिया है, यह कहते हुए की उनके खिलाफ विजलेंस के केस लंबित है। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा कि मुख्य कार्यकारी संचालन बोर्ड से ऊपर नहीं है और उन्हें कई मौकों पर एनसीयूआई के अध्यक्ष द्वारा चेतावनी भी दी गई है। उनके ऊपर एनसीयूआई से जुड़े विक्रताओं को परेशान करने का आरोप भी लगा है।
हालांकि पूरा मामला एनसीयूआई के अध्यक्ष पर छोड़ दिया गया है जो अभी कुछ कहने से बच रहे है। जानकार सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय ने भी इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। चूंकि बोर्ड उनकी नियुक्ति के बारे में फैसला करेगी, बोर्ड अकेले अंतिम फैसला ले सकती है।
भारतीय सहकारिता को प्राप्त जानकारी अनुसार, शासी परिषद के कुछ सदस्य डॉ दिनेश के कार्यकाल में विस्तार के पक्ष में है वहीं कुछ सदस्य खिलाफ है। गौरतलब है कि पटना में आयोजित बोर्ड की बैठक में सही तरह से चर्चा नहीं हो सकी क्योंकि कई सदस्य जैसे शिवाजी राव पाटिल, शिव सदन नायर, ज्योतिंद्र मेहता अनुपस्थित थे।
इससे पहले, भारतीय सहकारिता से बातचीत में डॉ दिनेश ने कहा था कि अगर आप मुझसे पूछते हैं कि मैं अपने विस्तार को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी रखता हूं तो मैं कहूँगा हां क्योंकि इस वर्ष आईसीए-एपी सहकारिता सम्मेलन की देखरेख करने के लिए मैं काफी उत्साहित हूँ। मैं पूरी नियोजन प्रक्रिया का हिस्सा रहा हूं और मैं इससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ हूं।