एनसीडीसी के पूर्व कार्यकारी निदेशक बदरूल हसन को एनसीयूआई का ड्रीम प्रोजेक्ट “सहकारी समितियों की रूपरेखा” बनाने के लिए नियोजित किया गया है। हसन महत्वाकांक्षी परियोजना को पूरा करने के लिए कार्यलय में देर तक कार्य करते रहते हैं।
सहकारी समितियों का कोई लेखा परीक्षा नहीं किया गया है और विशेषज्ञों का कहना है कि 25 करोड़ लोग और 6 लाख सहकारी समितियां सहकारी नेताओं द्वारा कही गई बात है। महाराष्ट्र जिलों में हुए सर्वेक्षण में पाया गया कि 50 प्रतिशत सहकारी समितियां केवल कागजात में ही मौजूद है।
कार्यभार संभाले के बाद प्रोफाइलिंग की योजना मेरी पहली प्राथमिकता है, एनसीयूआई के सीई सत्यनारायण ने बताया। यथार्थवादी और सही दृष्टिकोण कमजोर आंकड़ों के आधार पर संभव नहीं है। यहां तक कि सरकार से मदद का भी कोई परिणाम नहीं है अगर हमारे पास सहकारी समितियों की प्रोफाइल नहीं है, उन्होंने कहा।
यह योजना प्रत्येक क्षेत्र पर केंद्रित है। सहकारी समितियां जैसे इफको और कृभको तो जाने माने संगठन है लेकिन क्या हेंडलूम सहकारी समितियां या आवास सहकारी समितियां के बारे में, स्थिति क्या है, हसन ने पूछा।
हसन ने कहा कि डाटा इकट्ठा करना चुनौती भरा कार्य होगा। सहकारी समितियां के रजिस्ट्रार हमें सूची के साथ प्रस्तुत करेंगें, और उसके बाद सब कुछ हमें अपने सूत्रों के हवाले से सत्यापित करना होगा।
राज्यों से प्राप्त आंकड़े कभी-कभी काफी भ्रामक होते है, सत्यनारायण ने कहा। उन्होंनें राज्य की अविश्वसनीयता की रिपोर्ट को रेखांकित करते हुए कहा कि त्रिपुरा में आबादी सिर्फ 35 लाख है और उस राज्य में 40 लाख सहकारी समितियां या स्वंय सहायता समूह की सूची दी गई है।
हसन ने कहा कि संग्रह, संकलन और प्रसंस्करण प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है और उसके बाद हमें पाई चार्ट या फिर अन्य सांख्यिकीय आरेख के माध्यम से पेश करने की जरूरत है।