देश के सहकारी बैंक जमा राशि के रूप में अपने सदस्यों से विमुद्रीकरण नोट स्वीकार कर सकते हैं लेकिन वे नए नोटों को जारी करने के लिए अधिकृत नहीं है, इन बैंकों के अध्यक्ष और सीईओ ने संवाददाता को बताया।
नेफ्सकॉब के अध्यक्ष दिलीपभाई संघानी ने कहा कि “नए नोटों की अपर्याप्त राशि के कारण, खाता धारकों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मैंनें केंद्रीय मंत्री राधा मोहन सिंह और वित्त मंत्री अरूण जेतली से कहा है कि रबी मौसम शुरू होने वाला है और भारत सरकार को किसानों को पुराने नोटों से बीज और उर्वरक खरीदने के लिए अनुमति देनी चाहिए।
लक्ष्मी दास, अध्यक्ष, कांगड़ा सहकारी बैंक ने कहा कि “उच्च मुद्राओं की विमुद्रीकरण के कारण हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सभी सहकारी बैंक अपने ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं।
हमारा डिपोजिट दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है लेकिन करेंसी चेस्ट बैंक जमा राशि को लेने के लिए तैयार नहीं है। पूरे सहकारी बैंकिंग क्षेत्र उच्च मुद्राओं की विमुद्रीकरण के कारण नुकसान हो रहा है, इंद्रप्रस्थ सहकारी बैंक के सीईओ, राजीव गुप्ता ने कहा।
उदमसिंह नगर जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष सुभाष बेहड़ ने कहा कि “हमें ऋणों की वसूली को लेकर सबसे बड़ी दिक्कत हो रही है। बिंदु पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि हम किसानों को पैक्स सोसायटी के माध्यम से ऋण देते हैं जहां लगभग 350 करोड़ रुपये किसानों को ऋण के रूप में वितरित किया गया है। भारतीय रिजर्व बैंक को पैक्स समितियों को पुरानी मुद्रा लेने के लिए अनुमति देनी चाहिए, उन्होंने कहा।
भारतीय सहकारिता से बातचीत मे देहरादून जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष डॉ के.एस.राणा ने कहा कि “विमुद्रीकरण की यह योजना बिना किसी तैयारी के बहुत जल्दबाजी में शुरू कर दी गयी। बैंकों में पर्याप्त मात्रा में नई करेंसी नहीं आ रही है।शायद नए नोटों की छपाई भी अभी पर्याप्त मात्रा में नहीं हुयी है।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि उत्तराखंड राज्य में सहकारी बैंकों के लिए कोई करेंसी चेस्ट भी नहीं बना है, जिस कारण कहीँ से भी नई करेंसी नहीं आ पा रही है,जिस कारण उपभोक्ताओं को छोटी-छोटी रकम के लिए भी जूझना पड़ रहा है। सबसे बड़ी समस्या ये हो रही है कि सहकारी समितियों (मिनी बैंक/ग्रामीण बचत केंद्र) में किसानों के न तो डिपॉज़िट जमा हो रहा है और न वसूली जमा हो रही है, अध्यक्ष ने कहा।