केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि बिहार केले की खेती के लिए काफी उपयुक्त है और बड़े पैमाने पर केले की पैदावार यहां के किसानों की तकदीर बदल सकती है। कृषि मंत्री ने यह बात गोरौल जिला वैशाली, बिहार में केला अनुसंधान केन्द्र के शिलान्यास के अवसर पर कही।
कृषि मंत्री ने कहा कि अक्टूबर, 2016 को राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा को केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। इसके बाद वैशाली में केले की खेती करने के इच्छुक किसानों की उम्मीदें पूरी करने के लिए सरकार ने यहां केला अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया है।
केला अनुसंधान केन्द्र वैशाली के गोरौल प्रक्षेत्र के तहत आता है और पारिस्थितिकीय कारणों के कारण केला अनुसंधान केन्द्र की स्थापना के लिए गोरौल को चुना गया है। उन्होंने कहा कि यह केन्द्र देश एवं राज्य में केले की खेती के कम उपज के कारणों, खेती के रकवा विस्तार, पौधे के अन्य भागों के समुचित उपयोग, विभिन्न उत्पाद, विपणन एवं मूल्यवर्धन (वैल्यू एडिशन) के क्षेत्र में अनुसंधान करेगा।
सिंह ने बताया कि डा. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय ने प्रधानमंत्री के सपनों को पूरा करने के लिए केले की खेती से आमदनी दुगुनी करने के लिए शोध शुरू कर दिया है। इस शोध संस्थान के शुरू होने से यह अनुसंधान और जोर पकड़ेगा।
उन्होंने उम्मीद जताई कि केन्द्र अनुसंधानकर्ताओं के सहयोग एवं कृषकों की सहभागिता से बिहार एवं आसपास के राज्यों में महाराष्ट्र वाली केला क्राति का सूत्रधार बनेगा और इलाके के किसानों की समृद्धि एवं सुख का कारण बनेगा।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के किसान 26 सरकारी समितियों के माध्यम से घरेलू बाजार विकसित कर विदेशों तक केले का निर्यात कर केला उत्पादन में देश को एक नयी दिशा दे रहे हैं। महाराष्ट्र केले की सघन खेती, टीशू कल्चर, टपक सिंचाई आदि का उपयोग कर 12-15 हजार रेलवे वैगन प्रति वर्ष उच्च गुणवत्तायुक्त केला देशभर में भेजने का काम करता है।
सिंह ने कहा कि भारत में केले का उत्पादन 14.2 मि.टन है। भारत केला उत्पादन में दुनिया का प्रथम एवं रकबा में दुनिया में तीसरा स्थान रखता है जो फल के रकवे का 13 प्रतिशत एवं फल उत्पादन का 33 प्रतिशत है। राज्यों में महाराष्ट्र सबसे बड़ा उत्पादक है एवं इसके बाद तमिलनाडु आता है। महाराष्ट्र की उत्पादकता 65.7 टन/हे. है जो कि औसत राष्ट्रीय उत्पादकता 34.1 टन/हे. से अधिक है।
बिहार में केले की खेती 27.2 हजार हेक्टेयर में की जाती है, उत्पादन लगभग 550 हजार टन एवं औसत उत्पादकता 20.0 टन/हे. है जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।