कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने एक ऐसा आदेश जारी किया है जिससे देश के सहकारी आंदोलन मे दूरगामी परिणाम होने की आशंका जताई जा रही है। मंत्रालय ने एनसीयूआई से एनसीसीटी को अलग करने का आदेश जारी किया है। “चूंकि एनसीसीटी सरकारी अनुदान पर चल रही है और एनसीयूआई महज एक निजी निकाय जैसा है इसलिय़ एनसीसीटी का नियंत्रण मंत्रालय को करनी चाहिए”, मंत्रालय का तर्क है।
22 फरवरी को जारी इस पत्र ने सहकारी नेताओं के बीच हरकंप मचा दिया है। इस धमाकेदार बमबारी के बाद नेताओं को एक जुट हो जाना तय माना जा रहा है। संयोगवश एनसीयूआई से जुडे नेता मार्च 10 को बंगलौर में होनेवाले दक्षिणी जोन सम्मेलन में मिलेंगे। यहां गवर्निंग काउंसिल की बैठक भी रखी गई है जिसमें शायद अंतिम कॉल लिया जाएगा।
अपने 5-6 पेज के पत्र में मंत्रालय ने इसका शीर्षक दिया है “एनसीसीटी को एक स्वतंत्र और व्यावसायिक इकाई के रूप में स्थापित करना और इसे भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ से अलग करना”। इस पत्र में भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के कई खामियों को भी उजागर करने का प्रयास किया गया है जिसमें एनसीसीटी में व्याख्याता पदों को भरने में हुई अनियमित्तों का भी उल्लेख है। साथ ही ये भी याद दिलाया गया है कि एनसीसीटी में चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए सरकार ने पिछले वर्ष भी 5000 करोड़ रुपये दिए हैं।
पत्र में कहा गया है कि एनसीसीटी की स्थिति अपनी स्थापना के समय से ही अधर में लटकी हुई है। हालांकि यह भारत सरकार का 100 प्रतिशत अनुदानकारी संगठन है, लेकिन यह एनसीयूआई द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है। पत्र का यह भी कहना है कि एनसीयूआई एक निजी संस्था है जो न तो आरटीआई के तहत आता है और न ही सरकार के लेखापरीक्षा के लिए खुला है।
एनसीसीटी के इतिहास में जाते हुए इस पत्र में कहा गया है कि एनसीसीटी की स्थापना में एमएस स्वामीनाथन और आरबीआई भी शामिल थे और ग्यारहवें पंचवर्षीय योजना तक एनसीसीटी को 100 प्रतिशत सरकारी अनुदान प्राप्त होता था। 12 वीं पंचवर्षीय योजना के बाद इसका पालन-पोषण एनसीयूआई के शिक्षा निधि कार्पस से होने लगा और भारत सरकार द्वारा सिर्फ वित्तिय कमी की आपूर्ति होने लगी।
पत्र में कहा गया है कि एनसीयूआई के नियंत्रण के कारण, एनसीसीटी अपने मुकाम को हासिल करने में असफल रहा है। ट्रेनिंग के अपने लक्ष्य को ये आज भी हासिल करने में सक्षम नहीं है। एनसीयूआई की कुप्रबंधन के चलते इसके प्रमुख संस्थान वैमनिकॉम की प्रतिष्ठा पर भी आंच आई और इसकी छवि को गहरा धक्का लगा।
पत्र में यह भी कहा गया है कि एनसीसीटी में मंत्रालय द्वारा नियुक्त एकमात्र अधिकारी इसका सचिव है और वह डीजी या अध्यक्ष से पद में बहुत निचे है। “कई उदाहरण हैं जहां मंत्रालय के निर्देशों का एनसीसीटी द्वारा पालन नहीं किए गया”, पत्र में कहा गया।
पत्र में 2010-11 के लेक्चरर घोटाले का भी उल्लेख है। पत्र में कहा गया है कि व्याख्याताओं के 36 पदों की नियुक्ति में अनियमितताओं की लंबी श्रृंखला तैयार हो गई लेकिन कारवाई के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ। अध्यक्ष, एनसीसीटी भ्रष्टाचार की जांच के लिए ज़िम्मेदार है और कठोर कार्रवाई के लिए निर्देश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई।
मजे की बात है, यह पत्र एमएससीएस वेबसाइट पर अभी तक पोस्ट नहीं किया गया है। होली त्योहार के बीच में आ जाने के कारण सहकारी नेतागण टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। लेकिन जल्द ही इस समाचार में भारी आतिशबाजी की गुजांइश है, भारतीय सहकारी संगठन के एक वरिष्ठ सहकारी नेता ने कहा।