उत्तर प्रदेश में चल रहे सहकारिता चुनाव से जुड़ी एक खबर हापुर जिले के मीरपुर कला तहसहील की है कि योगेन्द्र सिंह नाम के व्यक्ति को कृषक सेवा सहकारी समिति में एक निदेशक के रूप में चुने जाने के बाद अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने से रोका गया। इसे सहकारी सिद्धांतो का खुलम खुला उल्लंघन माना जा रहा है।
अपनी आपबीती को भारतीय सहकारिता के साथ साझा करते हुए योगेन्द्र कुमार ने बताया कि “कृषक सेवा सहकारी समिति में 29 जनवरी को मुझे निदेशक के रूप में चुना गया था और अगले दिन 30 जनवरी को अध्यक्ष पद का चुनाव होना था लेकिन चुनाव के दिन मेरे घर के बाहर पिलकवा के सीओ और हाफिजपुर के एसओ समेत पुलिस बल डेरा जमाए बैठे थे। उन्होंने मुझे धर लिया और मुझे नामांकन पत्र दाखिल करने से रोका। पुलिस कर्मियों ने मुझे शाम को छोड़ा जब नामांकन दाखिल करने का समय खत्म हो गया था,” योगेन्द्र ने कहा।
“समिति में नौ निदेशकों में से छह निदेशक मेरे पक्ष मे थे और मेरा जीतना तय था इसी वजह से कानून को ताख पर रखकर पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया”, योगेन्द्र सिंह ने शिकायत की।
योगेन्द्र ने आगे कहा कि उन्होंने अपनी आपबीती डीएम से लेकर सीएम के साथ-साथ चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर साझा की थी लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया। सिंह ने भेजे गए पत्रों को भारतीय सहकारिता के साथ भी साझा किया।
“जब मैं जिला सहायक रजिस्ट्रार ऑफ कॉपेरिटव सोसायटी देवेन्द्र सिंह के यहां इस मामले की जांच और मध्यस्थता की नियुक्ति के विषय पर मिलने गया तो उन्होंने मिलने से इनकार किया औऱ मध्यस्थता की नियुक्ति के लिए 1000 रुपये शुक्ल लेने से भी माना कर दिया। सहायक रजिस्ट्रार ने कहा कि आप डीएम या कमीश्नर जिसके पास भी जाना चाहते हैं जाइएं लेकिन मैं आप से मध्यस्थता शुक्ल स्वीकार नहीं करूंगा, सिंह ने बताया।
आपको सच वताऊं तो मध्यस्थता शुल्क तब स्वीकार किया जाता है जब अदालत मामले में हस्तक्षेप करें। मेरी अपील पर लखनऊ उच्च न्यायालय ने 9 फरवरी को जिला मजिस्ट्रेट को मध्यस्थता शुल्क स्वीकार करने का आदेश दिया था, सिंह ने कहा।
बाद में, जिला मजिस्ट्रेट ने शुल्क स्वीकार किया फिलहाल फाइल अभी अटकी हुई है और मुझे कोई तारीख नहीं दी गई है। क्या यह लोकतंत्र है, योगेन्द्र ने निराश भाव से पूछा?
जो भी हो लेकिन इन दिनों योगेन्द्र लोकल मीडिया की सुर्खियों में छाए हुए हैं।