उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के बाद उत्तराखंड राज्य चुनाव प्राधिकरण हरकत में आई और पैक्स समितियों का चुनाव कराने में रुचि दिखा रही है। पैक्स के तर्क को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से तीन महीने के भीतर चुनाव कराने का आदेश दिया है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि पैक्स समितियों के निवर्तमान अध्यक्ष चुनाव प्रक्रिया तक समितियों में नियुक्त प्रशासकों के साथ बन रहेंगे।
पाठकों को ज्ञात होगा कि पैक्स समितियों के पदाधिकारियों का कार्याकाल मार्च में समाप्त होने के बाद राज्य सरकार ने बिना चुनाव प्रक्रिया को पूरा किए इन समितियों में प्रशासकों को नियुक्त किया था। हालांकि सरकार के कदम की राज्य के सहकारी नेताओं ने कड़ी निंदा की थी।
भारतीय सहकारिता से बातचीत में एक सहकारी नेता ने कहा कि पैक्स ने सरकार की मनमर्जी के विरुद्ध उत्तराखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
97 वें संवैधानिक संशोधन के अनुसार, सहकारी समितियों का चुनाव हर 5 वर्षों के बाद अनिवार्य है और इसलिए सरकार की मनमर्जी कानूनी प्रक्रिया में खरी नहीं उतर सकती है।
गौरतलब है कि भाजपा ने सत्ता में आने के बाद आनन-फानन में पैक्स के उपनियमों में बदलाव किया था। उप-नियमों में संशोधन से पहले एक सरकारी नॉमिनी होता था लेकिन अब दो होते हैं। इसके अलावा पैक्स समितियों का नाम बदलकर उनका नाम बहुउद्देशीय सहकारी समिति किया गया है।
राज्य की अधिकतर पैक्स समितियां कांग्रेस के लोगों द्वारा नियंत्रित की जाती है लेकिन भाजपा के लोग नियोजित तरीके से इसकी सत्ता को हासिल करने में जुटे हैं, कुछ सहकारी नेताओं ने आरोप लगाया। राज्य में लगभग 750 पैक्स सहकारी समितियां हैं।
राज्य के डीसीसीबी बैंकों का चुनाव जून में होना तय है वहीं इसके बाद सहकारी संघों और स्टेट कॉपरेटिव बैंक का चुनाव होगा।