इन दिनों नई दिल्ली के अगस्त क्रांति मार्ग पर स्थित एनसीयूआई का आलिशान कैंपस उपभोक्ता सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था एनसीसीएफ से जुड़ी नकारात्मक गतिविधियों का अड्डा बना हुआ है। मंत्रालय एनसीसीएफ में अपना एमडी नियुक्त करना चाहता है लेकिन एनसीसीएफ की बोर्ड इसका पुरजोर विरोध कर रही है जिसके चलते यह मुद्दा उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय और एनसीसीएफ की बोर्ड के बीच हाई वोल्टेज ड्रामा बन चुका है।
इस लड़ाई के चलते आये दिन पुलिसकर्मियों को एनसीयूआई परिसर में देखा जा सकता है। गौरतलब है कि मंत्रालय चाहता है कि वे एनसीसीएफ में अपने प्रबंध निदेशक की नियुक्ति करे लेकिन उपभोक्ता सहकारी संघ की बोर्ड के सदस्य इसका विरोध कर रहे हैं।
इस बीच मंत्रालय ने संयुक्त सचिव अनिल बहुगुणा को एनसीसीएफ के एमडी के रूप में नियुक्त किया है लेकिन संघ के अध्यक्ष और दिग्गज सहकारी नेता बीजेन्द्र सिंह समेत तमाम डायरेक्टर ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार किया है।
भारतीय सहकारिता से बातचीत में कई निदेशकों ने बताया कि उप-नियमों में ये स्पष्ट है कि केवल बोर्ड को ही संघ में एमडी को नियुक्त करने का अधिकार है। बोर्ड ने कमल चौधरी के बाद सौकत अली को नए प्रबंध निदेशक के रूप में नियुक्त किया है।
इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब शनिवार की शाम मंत्रालय के अधिकारी पुलिसकर्मियों के साथ एनसीयूआई परिसर में स्थित एनसीसीएफ कार्यालय में जबरन प्रवेश कर वहां से कई फाइलों को लेकर गई।
एनसीसीएफ के सूत्रों का कहना है कि दिल्ली स्टेट सहकारी बैंक के अध्यक्ष का पीएस जब इस मामले के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराने गया तो स्थानीय एसएचओ ने शिकायत दर्ज करने से इंनकार किया और कहा कि “उन्हें ऊपर से दबाव है”।
जब भारतीय सहकारिता ने इस मुद्दे पर एनसीसीएफ के अध्यक्ष बीजेंद्र सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने इस संवाददाता से बातचीत करने में रूचि नहीं दिखाई और कहा कि “मैं इस विषय पर बात करना ठीक नहीं समझता क्योंकि हालात इस समय नाजुक है”।
लेकिन उन्होंने माना कि बोर्ड ने अनिल बहुगुणा को एनसीसीएफ के एमडी के रूप में नियुक्त करने का विरोध किया। उन्होंने ये भी बताया कि बोर्ड ने सौकत अली को कार्यकारी एमडी से नियमित एमडी के रूप में पदोन्नत किया है। यह बोर्ड का निर्णय था जो पूरी तरह से सहकारी अधिनियम और एनसीसीएफ के उप नियमों के मुताबिक है, उन्होंने जोड़ा।
एनसीसीएफ सूत्रों ने बताया कि अनिल बहुगुणा जो अभी तक सरकारी नॉमिनी थे, चाहते हैं कि बोर्ड उन्हें एमडी के रूप में कार्यभार सौंपे। दिलचस्प बात यह है कि बहुगुणा ने सरकारी नॉमिनी के रूप में दिए गए चेक को भी नहीं लिया।
पाठकों को मालूम हो कि मंत्रालय और सहकारी नेताओं के बीच लड़ाई लंबे समय से चल रही है। 1 मई को एनसीसीएफ ने मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा था कि सरकार की एनसीसीएफ में 50 प्रतिशत से भी कम की हिस्सेदारी रह गई है और एनसीसीएफ की हिस्सेदारी इससे कहीं ज्यादा है।
वहीं एनसीसीएफ ने सरकार का शेयर वापिस करने का फैसला लिया और मंत्रालय जाकर उनका हिस्सा वापस कर आई। लेकिन सरकार अपने शेयर को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है, एनसीसीएफ के जुड़े वरिष्ठ सहकारी नेता ने बताया। “शेयर की वापसी के साथ, मंत्रालय एनसीसीएफ की बोर्ड पर अपने दो निदेशकों को रखने का अधिकार खो देगी। वास्तव में, बोर्ड में मंत्रालय की तरफ से एक भी निदेशक नहीं होना चाहिए, एक वरिष्ठ नेता ने कहा।