भारत के उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने सोमवार को एनसीयूआई ऑडिटोरियम में भाषण देते हुए कहा कि “मैं अब राजनेता नहीं हूं और इस मंच से मैं विवादास्पद मुद्दों पर नहीं बोलूंगा।”
उन्होंने सहकारी नेतृत्व की आलोचना नहीं की जो कि राजनीतिक वर्ग के बीच इन दिनों एक फैशन बन गया है, भले ही उसका आचरण स्वयं वो करते हैं या नहीं। श्री नायडू ने अपने भाषण में पार्टी और राजनीति से परे हटकर बात की।
श्री नायडू ने सहकारी आंदोलन के सकारात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए कहा कि, “मुझे पता है सहकारी आंदोलन में भी भ्रष्टाचार के कई मामले आते हैं जैसे कॉर्पोरेट या अन्य क्षेत्रों में आते हैं, महत्वपूर्ण ये है कि हम किस भावना से काम करते हैं। उन्होंने इस मौके पर सहकारी नेताओं से वैकुंठभाई मेहता के आदर्शों और सिद्दातों पर चलने का आग्रह किया।
विशेष रूप से, उपराष्ट्रपति ने सहकारी समिति के संचालन में व्यक्ति का चरित्र, कैलिबर, कैपेसिटी और अचारण पर जोर दिया। सहकारी आंदोलन को चुनावी राजनीति से ऊपर मानते हुए श्री नायडू ने कहा कि सहकारिता भेद-भाव, जात-धर्म से ऊपर उठने में सक्षम है।
“कृषि और सहकारिता पर एक सेमिनार में भाग लेने के लिए मैं पुणे गया था जहां पूर्व केंद्रिय कृषि मंत्री शरद पावर भी आए हुए थे और उन्होंने ही मुझे वैकुंठभाई मेहता के जीवन के बारे में बताया था”, श्री नायडू ने कहा।
किसानों के बीच सहकारी संगठन के लाभों को समझाते हुए उन्होंने कहा कि, “आपको इससे अर्थव्यवस्था का एक स्तर मिलता है ताकि आप सामूहिक रूप से कई बड़े-बड़े काम कर सकें और इस तरह आप बचत करने में सक्षम होते हैं, श्री नायडू ने सरल तरीके से अपनी बात रखी।