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पीएसयू बैंकों में पेशेवरों के बावजूद हालत खस्ता क्यों?: मेहता

भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से यूसीबी के लिए बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट (बीओएम) का गठन करने के लिए हाल ही में जारी किये गये ड्राफ्ट दिशानिर्देशों का सहकारी बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े नेताओं ने जमकर विरोध किया है।

कई सहकारी समितियों ने आरबीआई द्वारा सहकारी क्षेत्र में जबरन हस्तक्षेप का विरोध किया है। उनका मानना है कि ये मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव एक्ट, जिसे 2002 में भारत की संसद द्वारा पारित किया गया था को नष्ट करने का प्रयास है।

बीओएम को आरबीआई द्वारा विघटित करने के मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सहकार भारती के अध्यक्ष ज्योतिंद्र मेहता ने कहा कि, “सहकारी समितियों में जनरल बॉडी सर्वोच्च होती है और केवल इसके सदस्यों के पास ही किसी को हटाने और नियुक्त करने का अधिकार है। फिर आरबीआई कैसे इस अधिकार को छीन सकती है”, उन्होंने पूछा।

अर्बन कॉपरेटिव बैंकों में बोर्ड ऑफ डायरेक्टरों के अंतर्गत काम करने वाली बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट बनाने पर चर्चा पिछले 3-4 चार साल से चल रही है लेकिन इसके क्रियान्वयन  के बाद बड़ी संख्या में अकेली शाखा वाली अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों को दिक्कतों का सामना करना होगा”, मेहता ने कहा।

“अधिकांश अर्बन कॉपरेटिव बैंकों की केवल एक ही शाखा है और जिनमें से कई बैंक 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं। उन्हें प्रोफेशनल लोगों को नियुक्त करने के लिए धन जुटाने में मुश्किल होगी। साथ ही दूरदराज इलाकों के लिए प्रशिक्षित लोगों को ढूंढना मुश्किल होगा”, मेहता ने रेखांकित किया।

आरबीआई के दिशानिर्देशों के मुताबिक, बोर्ड के कम से कम आधे सदस्यों को वित्त, अर्थशास्त्र, कानून या आईटी में विशेष योग्यता होनी चाहिए। बीओमए की जिम्मेदारी बैंक में क्रेडिट प्रबंधन, रिस्क प्रबंधन और तरलता प्रबंधन से जुड़ी होगी।

ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों के मुताबिक, अर्बन कॉपरेटिव बैंकों को निदेशक मंडल के साथ-साथ बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट (बीओएम) का गठन करना होगा और दोनों का कार्यकाल एक समय पर समाप्त होना चाहिए।

“मेहता ने कहा कि ये जरूरी नहीं कि बोर्ड में कई प्रोफेशन लोगों के रहने से सब ठीक ही होता है। “पीएसयू बैंकों की बोर्ड में प्रोफेशन लोग ही होते हैं और आज उनमें से कई भारी एनपीए के शिकार हैं। इन दिनों सरकार उनको पुन:स्थापित करने का प्रयास कर रही है।

मेहता ने ये भी पूछा कि जब आरबीआई ने पहले से ही अर्बन कॉपरेटिव बैंकों की बोर्ड पर प्रोफेशनल लोग जिनमें एक सीए और वित्तीय विशेषज्ञ का प्रावधान किया है तो फिर इस नए विचार की क्या आवश्यकता थी। उन्होंने इस संदर्भ में टैफकॉब का भी हवाला दिया और कहा कि इसे सुचारू रूप से चलाना बेहद जरूरी है।

ज्योतिंद्र मेहता ने मालेगाम समिति की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि, “रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि यूसीबी का कुल एडवांस का 90 प्रतिशत हिस्सा 5 लाख से कम के लोन का है। और यह बात हमारे द्वारा नहीं बल्कि रिपोर्ट में कही गई है”, उन्होंने बताया। याद हो कि इसी मालेगाम की रिपोर्ट में बीओएम की सिफारिश है, मेहता ने चुटकी लेते हुए कहा।

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