एक बार फिर एनसीसीटी को एनसीयूआई से अलग करने का मामला गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए आया लेकिन इस मामले को अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया गया। सुनवाई की सुबह एनसीयूआई से जुड़े लोगों में उत्साह का माहौल था कि उनके पक्ष में फैसला आएगा लेकिन बाद में जब उन्हें सुनवाई टलने की खबर मिली तो वे मायूस हो गए थें।
एनसीयूआई के सीई एन सत्यनारायण ने बताया कि मामला सुनवाई के लिए दोपहर ढाई बजे के आसपास आया था लेकिन माननीय न्यायाधीश ने मामले को 8 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया।
बता दे कि मंत्रालय के प्रतिनिधि ने भी सुनवाई को स्थगित करने का अनुरोध नहीं किया था और न्यायाधीश ने खुद मामले की सुनवाई 8 अक्टूबर तय की। वास्तव में, गुरुवार को न्यायाधीश को कई मामलों को निपटाना था और इससे पहले कि हमारे मामले में बहस हो कोर्ट ने इसे अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया, सीई ने बताया।
हालांकि, एनसीयूआई के अधिकारीगण और वकील अदालत में पूरी मजबूती से खड़े थे लेकिन सरकार के पक्ष से सिर्फ वकील के सहायक ही मौजूद थे जब न्यायाधीश ने मामले को स्थगित किया।
इस मामले की आखिरी सुनवाई जुलाई माह में हुई थी। एनसीयूआई के वकील कृष्णन दयाल ने अपनी बातों को बड़ी बारीकी से समझाया था और कहा कि सरकार के इस कदम से देश की शीर्ष सहकारी संस्था कमजोर होगी। उन्होंने एनसीयूआई के उप-नियमों का भी उद्धरण दिया और सरकार के कदम को अदालत में बाध्य साबित करना आसान नहीं होगा।
पिछली सुनवाई में बेंच ने सरकारी वकील से जवाब देने के कहा था, जिसके लिए उन्होंने वक्त मांगा। कोर्ट ने सरकारी वकील को जोर देकर कहा था कि तर्क लंबा नहीं होना चाहिए। वकील को एक-दो पृष्ठों में ही जवाब देने को कहा गया।
पाठकों को याद होगा कि एनसीयूआई को कृषि मंत्रालय की तरफ से एक पत्र प्राप्त हुआ था जिसका शीर्षक था कि “नेशनल काउंसिल कॉपरेटिव ट्रेनिंग को स्वतंत्र और व्यावसायिक इकाई बनाने के लिए नेशनल कॉपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया से अलग करना”।
पत्र में कहा गया है कि एनसीयूआई के नियंत्रण के कारण, एनसीसीटी अपने लक्ष्य को हासिल करने में असफल रही है और इसकी वजह से प्रमुख संस्थान वामनिकॉम की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा है। हालांकि एनसीयूआई ने इन आरोपों का खंडन किया है।