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नेफकॉब: 42वीं एजीएम मेहता की अध्यक्षता में संपन्न

ऐसा दो साल के बाद हुआ है जब अर्बन कॉपरेटिव बैंकों और क्रेडिट सोसायटी की शीर्ष संस्था नेफकॉब की एजीएम की अध्यक्षता नियमित अध्यक्ष ने की हो। अध्यक्ष पद पर पुन:स्थापित ज्योतिंद्र मेहता ने आत्मविश्वास से लबालब होकर देश के विभिन्न हिस्सों से आए नेफकॉब के सैकड़ों सदस्यों को संबोधित किया।

ज्योतिंद्र मेहता को शुक्रवार को आयोजित बोर्ड की बैठक के दौरान नेफकॉब के अध्यक्ष के रूप में बहाल किया गया था। इससे एक दिन पूर्व लंबे समय से चल रही कानूनी लड़ाई में मेहता ने जीत दर्ज की थी। 

मंच पर अर्बन कॉपरेटिव बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े कई दिग्गज मौजूद थे। इस अवसर पर आरबीआई के निदेशक सतीश मराठे को अपने बीच देखकर लोग काफी उत्साहित थे। कर्नाटक से सहकारी नेता एच के पाटिल और नेफकॉब के सम्मानित निदेशक ने कहा कि, “सहकारी क्षेत्र को मराठे से काफी उम्मीदें है और हमें खुशी है कि अब क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर सरकार का सकारात्मक रूख रहेगा।”

एजीएम में सबसे पहले भाषण देने वाले व्यक्ति नेफकॉब के तत्कालीन अंतरिम अध्यक्ष रामबाबू शांडिल्या थे जिन्होंने पिछले दो वर्षों में सर्वोच्च निकाय के बारे में एक संक्षिप्त रिपोर्ट पेश की। शांडिल्या ने यूसीबी बैंकों के एनपीए की तुलना पीएसयू से की और कहा कि यूसीबी सेक्टर में कई ऐसे बैंक है जिनका एनपीए 0 प्रतिशत है। उन्होंने छोटे-2 यूसीबी के विलय के विचार की भी वकालत की ताकि आरबीआई द्वारा किसी बैंक को सी और डी ग्रेड देने का मुद्दा हमेशा के लिए खत्म हो जाए।

कम्युनिस्ट घोषणापत्र में कार्ल मार्क्स द्वारा दिए राजनीतिक नारे के तर्ज पर नेफकॉब के अध्यक्ष ज्योंतिद्र मेहता ने अपने भाषण में दुनिया के सहकारी नेताओं को एकजुट होने की बात कही। “2019 का चुनाव बहुत दूर नहीं है और हमें इस चुनाव में सभी सहकारी नेताओं को समर्थन देने चाहिए चाहे वे किसी भी पार्टी का प्रतिनिधित्व क्यों न करते हों। अगर हमारे सहकारी नेता नगर पालिक से लेकर संसद तक मौजूद होंगे तो हमारी बात सुनी जाएगी और हमारी लॉबी मजबूत होगी”, मेहता ने जोर देकर कहा।

मेहता ने यह भी कहा कि माधवपुरा घोटाले के बाद, यूसीबी को कई समस्याओं से गुजरना पड़ा और उन्हें जमाकर्ताओं, नियामकों और यह तक कि मीडिया के सवालों का भी सामना करना पड़ा। हम यह गर्व से कह सकते हैं कि आज यूसीबी बैंकों का एनपीए 3 प्रतिशत से भी कम है और हमने माधवपुरा घोटाले को पीछे छोड़ दिया है।

“हमारा नब्बे प्रतिशत से अधिक ऋण 5 लाख रुपये से कम का है और हम छोटे बाजार में अधिक पैसा वितरित करते हैं। हम में से कई सहकारी बैंक 10 से 25 हजार रुपये का ऋण भी दे रहे हैं”, मेहता ने यूसीबी की सर्वव्यापकता का परिचय देते हुए कहा।

यूसीबी के लिए अमब्रेला संगठन स्थापित करने के महत्व पर जोर देते हुए मेहता ने राबो बैंक ऑफ नीदरलैंड का उल्लेख किया और कहा कि इसके माध्यम से छोटे बैंक महंगी तकनीक का लाभ उठा सकते हैं। बैंक में बीओडी के साथ बीओएम बनाने के मुद्दे पर मेहता का मानना है कि तीस प्रतिशत बड़े यूसीबी के लिए यह स्वैच्छिक प्रावधान हो सकता है बशर्ते कि उन्हें अधिक शाखाओं जैसे मामलों में इंसेंटिव मिले

इस अवसर पर बोलते हुए एच.के पाटिल ने एनओसी जारी करने में सहकारी समितियों के रजिस्ट्रारों की भूमिका पर असंतोष व्यक्त किया और इसे ऑनलाइन बनाने की मांग की। उन्होंने सतीश मराठे की अगुवाई में आरबीआई की स्टैंडिंग कमेटी के पुनरुत्थान की भी मांग की। एक वरिष्ठ नेता होने के नाते उन्होंने सहकारी नेताओं से आपसी मतभेद दूर कर काम करने का आग्रह किया।

सतीश मराठे ने नीति निर्माताओं की मानसिकता को बदलने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह ध्यान रखना चाहिए कि यह इकनॉमिक एंटरप्राइज है बिजनेस एंटरप्राइज नहीं है। उन्होंने आरबीआई निदेशक के रूप में हर संभव सहायता प्रदान करने का भी वादा किया। 

इस मौके पर बड़ी संख्या में प्रतिनिधियों ने मंच से अपनी-अपनी समस्याओं को रेखांकित किया। यदि वीसीबी के राघवेंद्र राव ने सोने ऋण के कारोबार में सहकारी समितियों को दूर करने में पीएसयू के प्रयासों की शिकायत की तो नेशनल कॉपरेटिव बैंक, बैंगलोर के सुरेश ने राज्य में सहकारी समितियों के सामने कठोर परिस्थितियों की बात कही। कई अन्य लोगों ने इस क्षेत्र से जुड़े कई मुद्दों को छुआ।

नेफकॉब उपाध्यक्ष विद्याधर अनस्कर ने धन्यवाद ज्ञापन रखा।

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