केंद्र की ओर से अध्यादेश जारी होने के बावजूद, चेन्नई स्थित रिप्रोडिट्स कोऑपरेटिव फाइनेंस एंड डेवलपमेंट बैंक अपने व्यापार को अगले वित्तीय वर्ष तक 17,000 करोड़ रुपये तक ले जाने और 8 नई शाखाएं खोलना की योजना बना रहा है, बैंक की एमडी आर एस इसाबेला ने भारतीय सहकारिता को फोन पर बताया।
हमने इस वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले 15,000 करोड़ रुपये का कारोबार हासिल किया है और पिछले वित्त वर्ष की तुलना में व्यापार में 11 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। बैंक का वर्तमान में कुल डिपोजिट 8,660 करोड़ रुपये और ऋण और अग्रिम 6350 करोड़ रुपये का है। हमने अगले वित्त वर्ष के अंत तक 17,000 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने का लक्ष्य रखा है और यह आसानी से प्राप्त हो जाएगा, इसाबेला ने बात-चीत में कहा।
उन्होंने कहा कि पिछले 15 वर्षों से हम अपने 71,000 से अधिक अंशधारकों को 20 प्रतिशत लाभांश वितरित कर रहे हैं और इस वर्ष भी हम 20 प्रतिशत लाभांश वितरित करेंगे। हम उम्मीद कर रहे हैं कि हम इस वित्त वर्ष 2018-19 में 105 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ अर्जित करेंगे।
वर्तमान में बैंक की दक्षिणी राज्यों में 108 शाखाएं हैं और अपने नेटवर्क को फैलाने और अधिक से अधिक लोगों को बैंक से जोड़ने के लिए लगभग 8 शाखाओं का शुभारंभ करेंगे। उन्होंने बताया कि बैंक के 10 लाख से अधिक ग्राहक हैं।
महिलाओं के सशक्तिकरण में बैंक की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, रेपको बैंक की एमडी ने कहा कि, “रेपको बैंक ने 60,000 से अधिक स्वयं सहायता समूह बनाए हैं और अब तक इन स्वयं सहायता समूहों को 2,000 करोड़ रुपये से अधिक की सहायता दी गई है। करीब 4 लाख से अधिक महिलाएं लाभार्थी हैं।
बैंक महिलाओं को जमा राशि पर विशेष लाभ दे रहा है। इसके अलावा, बैंक सीएसआर गतिविधियों में भी योगदान देने में सक्रिय है। बैंक ने 2007 में एक ट्रस्ट बनाया जिसे रिपैट्रिएट की मदद करने के उद्देश्य से बनाया गया था। इसाबेला ने कहा कि अब तक 35,000 लोगों को लाभ मिल चुका है।
रेप्को बैंक का शुद्ध एनपीए 3 प्रतिशत और सकल एनपीए 6 प्रतिशत से कम है।
केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश में कहा है कि रेपको बैंक- मतदान नहीं करने वाले सदस्यों से जमा स्वीकार करने में अयोग्य है क्योंकि बैंक बहु-राज्य सहकारी समितियों अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत है। अध्यादेश ने संगठन को दुविधा में डाल दिया है।
आपको बता दें कि रेपको बैंक अपने करीब 10 लाख ऐसे सदस्यों के समर्थन से फल-फूल रहा है जिनके पास मतदान का अधिकार नहीं है।