देश में सहकारी प्रशिक्षण इन दिनों कुछ चुनिंदा लोगों की वजह से मजाक बना हुआ है। एनसीयूआई ने एनसीसीटी को फंड देने से इनकार कर दिया है और प्रतिशोध में मंत्रालय ने एनसीयूआई को फंड देने से इनकार किया है जिससे सहकारी प्रशिक्षण बड़े पैमाने पर प्रभावित हो रहा है। एनसीयूआई और मंत्रालय दोनों बिल्ली और चूहे का खेल खेल रहे हैं।
अब चूंकि चुनाव की वजह से निर्णय लेने की गति धीमी हो जाती है इसलिए जब तक चुनाव संपन्न नहीं हो जाता और नई सरकार कार्यभार नहीं संभाल लेती तब तक इससे निजात पाना मुश्किल लग रहा है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा 2018-19 में दी गई एक प्रशासनिक मंजूरी के बावजूद एनसीयूआई सरकार से प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए एक नया पैसा भी प्राप्त करने में विफल रही है। शीर्ष निकाय ने 31 मार्च तक इंतजार किया लेकिन उसके कुछ हाथ नहीं लगा।
एनसीयूआई के निदेशक स्तर के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि, “मंत्रालय 2018-19 के स्वीकृत बजट की सभी पिछली किस्तों को चुकाने में विफल रहा है।”
मंत्रालय से अवर सचिव हर्ष प्रकाश द्वारा दिनांक 08.11.2018 को हस्ताक्षरित एक आधिकारिक पत्र दिखाते हुए, एनसीयूआई अधिकारी ने कहा कि “सहकारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कृषि सहयोग के लिए भारत सरकार की स्वीकृति योजना लागू करने के लिए मुझे निर्देशित किया गया है। वर्ष 2018 के दौरान निम्नलिखित घटकों के साथ प्रशिक्षण 1 सहकारी शिक्षा 2 जेसीटीसी को सहायता।
मंत्रालय के साथ तालमेल बिठाने और अपने कार्यकाल में साल-दर-साल उच्च अनुदान प्राप्त कराने की दिशा में अपने मुख्य कार्यकारी अधिकारी एन सत्यनारायण की भूमिका की सराहना करते हुए, निदेशक ने कहा कि मंत्रालय के अधिकारियों का तर्क है कि जब एनसीयूआई मंत्रालय की बात नहीं सुनती है तो इसे फंड क्यों देना चाहिए? एनसीयूआई अधिकारी ने एनसीयूआई और मंत्रालय के बीच फंसे तीन बिंदुओं को रेखांकित करते हुए बताया।
पहले मंत्रालय ने जोर देकर कहा था कि कॉर्पस फंड को एनसीसीटी को हस्तांतरित किया जाना चाहिए, लेकिन हमारी जिद के बाद वे चाहते हैं कि ब्याज में एनसीसीटी का नियंत्रण रहे, एनसीयूआई अधिकारी ने कहा। “लेकिन अब सबसे अहम मुद्दा एनसीसीटी को एनसीयूआई से अलग करने का है। जब से हम इस मुद्दे पर अदालत गए तो ये बात मंत्रालय को नहीं पची और वे सहकारिता के सर्वोच्च निकाय के प्रतिसख्त रवैया अपनाया रहा है”, उन्होंने संक्षेप में कहा।
दूसरा तर्क यह है कि मंत्रालय एक अधिकारी को चेक पर हस्ताक्षर करने के लिए नियुक्त करना चाहता है। इस मुद्दे पर शीर्ष सहकारी निकाय की गवर्निंग काउंसिल ने मंत्रालय के साथ बातचीत कर इसे सुलझाने का फैसला लिया था। लेकिन मामला अभी तक सुलझा नहीं है।
एनसीयूआई का दावा है कि अधिनियम बहुत स्पष्ट है और कहता है कि एनसीयूआई शिक्षा कोष का संरक्षक है। एमएससीएस के नियम 25 में कहा गया है कि फंड का प्रबंधन एनसीयूआई के अध्यक्ष और केंद्रीय रजिस्ट्रार, कृषि विभाग, वित्तीय सलाहकार, बहु राज्य सहकारी समितियों के दो प्रतिनिधियों द्वारा नामित, केंद्रीय सरकार, महानिदेशक (एनसीसीटी) और सदस्य के रूप में वामिकॉम के निदेशक की नामित समिति द्वारा किया जाएगा।
अधिकारी के मुताबिक तीसरा तर्क जो दोनों के बीच संबंधों को बिगाड़ता है वह एनसीसीटी के सचिव मोहन मिश्रा के भविष्य का है।मिश्रा एनसीयूआई के वेतन पर हैं और मंत्रालय चाहता है कि एनसीयूआई मिश्रा को आजाद कर दे, ताकि वह एनसीसीटी में कार्यरत हो सकें। फिलहाल मिश्रा का भविष्य अधर में लटका है क्योंकि एनसीयूआई इस मामले पर कोई निर्णय नहीं ले रहा है।
फंड के मुद्दे को हल करने के लिए अतिरिक्त सचिव श्रीमती वसुधा मिश्रा ने कार्यभार संभालते ही विवाद में उलझे दोनों पक्षों को बुलाया।मंत्रालय के अधिकारियों और एनसीयूआई की बैठक तो हुई लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला।