हाल ही की घटना से यह स्पष्ट हो गया कि विपुल चौधरी की ओर से की गई विसंगतियां अभी भी दुनिया की सबसे बड़े डेयरी सहकारी संस्था-जीसीएमएमएफ को परेशान कर रही है। पिछले रविवार को जीसीएमएमएफ का एक दुग्ध संघ “मेहसाणा” ने मूल निकाय से अलग होने की घोषणा कर दी। दूधसागार डेयरी के रूप से जाने वाली मेहसाणा डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर यूनियन की बोर्ड ने जीसीएमएमएफ से अलग होने और अपने दूध को स्वतंत्र रूप से बेचने का संकल्प लिया।
हालांकि विशेषज्ञों ने उक्त संकल्प को बचकाना कहा है तो जीसीएमएमएफ के एमडी आर.एस.सोढ़ी ने खुलकर बताया कि निर्णय लेने वालों के कुप्रबंधन और दूरदर्शिता की कमी के कारण दूधसागर कैसे साल दर साल नीचे चला गया है।
फिर भी सोढ़ी ने कहा कि उम्मीद है कि बोर्ड अपने फैसले पर फिर से विचार करेगा, नहीं तो अमूल ब्रांड की छवि इससे प्रभावित होगाी क्योंकि मेहसाणा अमूल के संस्थापकों में से एक है। जीसीएमएमएफ के लिए व्यावसायिक नुकसान से अधिक यह एक भावनात्मक मुद्दा है, विवाद के मद्देनजर “भारतीय सहकारिता” को दिए गए बयान में सोढी ने कहा।
“दिल्ली में दूध के 50 ब्रांड हैं जहाँ अमूल नंबर एक पर है। अगर मेहसाणा 51वें ब्रांड के रूप में शुरू होती है तो आप एनसीआर के अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बाजार में इसके भविष्य की कल्पना कर सकते हैं”, सोढी ने कहा।
सोढ़ी ने मेहसाणा के अन्य आरोपों को भी खारिज कर दिया जिनमें एक ये है कि जीसीएमएमएफ के पास दूधसागर का पैसा बकाया हैं। “एक पैसे का भी बकाया नहीं है क्योंकि हमारे बिलिंग चक्र, जो 15-20 दिनों का होता है हम भुगतान करते हैं। मेहसाणा फेडरेशन के साथ हर महीने 300 करोड़ रुपये का कारोबार करता है। अप्रैल महीने के लिए, हम अब तक 210 करोड़ रुपये का भुगतान कर चुके हैं। तो, भुगतान कहां रूका है? ”सोढ़ी ने पूछा।
उनका कहना है कि हम पर उनका 350 करोड़ रुपये बकाया है। सच्चाई यह है कि कई वाणिज्यिक निर्णय – जैसे महाराष्ट्र से पशु-आहार खरीदना या राजस्थान से दूध खरीदना जो उन्होंने पूर्व में लिए था, को जीसीएमएमएफ बोर्ड का समर्थन नहीं था। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी जीसीएमएमएफ के पक्ष में फैसला सुनाया है, फिर भी वे (मेहसाणा) वही बात दोहरा रहे हैं।
सोढी ने दूधसागर डेयरी की वर्तमान हालात के बारे में जिक्र हुए कहा कि बिना किसी योजना के दूध की प्रोसेसिंग की क्षमता-विस्तार की योजना ने दुग्ध संघ को इस स्तर तक पहुँचाया दिया है। “उन्होंने बैंक से इसके लिए 1500 करोड़ रुपये का ऋण लिया और 73 मिलियन लीटर दूध की क्षमता का निर्माण किया, जबकि पिछले 9 वर्षों से उनकी दूध की खरीद एक औंस भी नहीं बढ़ी है; यह तब 18 लाख लीटर था और अब भी इतना ही है” उन्होंने कहा।
पाठकों को याद होगा कि अपनी एजीएम में मेहसाणा डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन ने रविवार को बहु-राज्य सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकरण करके महासंघ के से अलग होने का प्रस्ताव पारित किया था। डेयरी महासंघ की 18 सदस्य-यूनियनों में से दूधसागर एक है।
वहीं विशेषज्ञ दूधसागर के इस कदम को लोकसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक रूप में देखते हैं। जीसीएमएमएफ से जुड़े ज्यादातर दूध-संघों में भाजपा के लोग हैं, वहीं दूधसागर डेयरी में ज्यादातर कांग्रेसी हैं। यह स्पष्ट है कि जीसीएमएमएफ को परेशान करने के लिए विपुल चौधरी की विरासत जारी है।
पिछले साल गुजरात उच्च न्यायालय ने विपुल, जिन्हें अदालतों द्वारा सहकारी चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था, से 42 करोड़ रुपये की वसूली का आदेश दिया था। मेहसाणा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ में कथित अनियमितताओं के लिए चौधरी राज्य सरकार द्वारा कई कार्रवाइयों का सामना कर रहे हैं। पिछले दिनों भारतीय सहकारिता ने इस मुद्दे पर कई खबरें प्रकाशित की थी।