एनसीसीई ने इस महीने के पहले सप्ताह में नई दिल्ली में भारत की एससी और एसटी सहकारी समितियों के अध्यक्ष और निदेशकों के लिए तीन दिवसीय नेतृत्व विकास कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसमें इस तथ्य को रेखांकित किया कि एक उद्यम के रूप में सहकारी समितियों का जन्म समाज के सभी वर्गों को मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में शामिल करने की आवश्यकता से हुआ था।
एनसीसीई द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि एनसीयूआई विशेष रूप से उन सहकारी समितियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है जो समाज के नीचले तबके द्वारा संचालित किया जाता है।
असम, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की 26 से अधिक एससी/एसटी सहकारी समितियों के प्रतिनिधियों/नेताओं ने इस कार्यक्रम में भाग लिया। एनसीयूआई की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य किरण काकती ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने प्रतिभागियों के साथ अपने स्वयं के अनुभवों और संघर्षों को साझा किया और उन्हें अपनी सहकारी समितियों की बेहतरी के लिए अपना समय, ज्ञान और अनुभव समर्पित करने के लिए कहा।
उन्होंने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे न केवल जानकार व्यक्तियों से विषय के बारे में जानें, बल्कि उनकी बोलने की शैली और व्यवहार का अनुकरण करने का भी प्रयास करें करें।
चूंकि अधिकांश प्रतिभागी पहली बार इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग ले रहे थे, अत: उन्हें सहकारी विचारधारा, प्रबंधन, निदेशक मंडल की जिम्मेदारियां और भूमिका, सहकारी कानून, डिजिटलाइजेशन और कम्प्यूटरीकरण की अवधारणाओं से परिचित कराया गया।
एनसीसीई/एनसीयूआई के संकाय-सदस्य, दिल्ली सहकारी प्रशिक्षण केंद्र, एनसीडीसी और एनबीसीएफडीसी के विशेषज्ञों द्वारा उन्हें सहकारी समितियों के वित्तीय प्रबंधन, रिकॉर्ड-कीपिंग, नेतृत्व शैली, कार्यक्रमों और योजनाओं के बारे में पढ़ाया गया।
प्रतिभागियों के लिये कार्यक्रम बहुत सूचनाप्रद और प्रभावी रहा। इस कार्यक्रम से उन्हें निदेशक मंडल के रूप में अपनी भूमिका को समझने में मदद मिली जिससे वे अपनी-अपनी सहकारी समितियों को सफलता के पथ पर आगे बढ़ा सकेंगे।