न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारत को डेयरी उत्पादों के निर्यात की अनुमति के पक्ष में फाइनेंशियल एक्सप्रेस में छपे एक लेख के बाद ट्विटर पर प्रतिक्रिया का दौर शुरू हो गया है। सान्या शर्मा और राम उपेंद्र दास की जोड़ी द्वारा लिखे गये लेख में कहा गया है कि भारतीय किसानों को इससे फायदा होगा।
वहीं जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने लेख की सामग्री को वास्तविकता से दूर बताते हुए कहा कि इन देशों से आयात की अनुमति देने पर डेयरी क्षेत्र से जुड़े 10 करोड़ भारतीय किसानों की आय में कमी आएगी। यह किसानों की आय दोगुनी करने के प्रधानमंत्री के अभियान के भी विरुद्ध होगा।
उद्विग्न होकर सोढ़ी ने ट्वीट किया है, “भारतीय डेयरी उद्योग में 40 साल का अनुभव है और डॉ. वी. कुरियन के साथ 30 साल का। इस आधार पर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि अगर इसे लागू किया जाता है तो आय निश्चित रूप से न्यूजीलैंड के 10 हजार किसानों की दोगुनी होगी लेकिन 10 करोड़ भारतीय किसानों की आय आधी हो जाएगी”।
सोढ़ी ने दावा किया कि वास्तव में न्यूजीलैंड के 10 हजार किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी, जबकि 50 करोड़ भारतीय किसानों की आय आधी हो जाएगी, इस बात पर कई विशेषज्ञों ने व्यापक रूप से सोढ़ी का समर्थन किया।
जाने-माने किसान नेता अजयवीर जाखड़ ने लिखा, “यह लेख इतना पक्षपाती और अपरिपक्व है कि मुझे इस बात पर चिंतन करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि यह फाइनेंशियल एक्सप्रेस में कैसे छपा?”
फायनेंसियल एक्स्प्रेस ने इस लेख से अपना पल्ला झाड़ते हुए लेखकों सान्या शर्मा और राम उपेंद्र दास का परिचय ‘क्षेत्रीय व्यापार केंद्र’ (सीआरटी), नई दिल्ली के रिसर्च फेलो और प्रमुख के रूप में दिया।
दोनों का तर्क है कि “आपूर्ति में वृद्धि करना पोषण संबंधी उद्देश्य, गुणवत्ता बनाए रखना और कीमतों की स्थिरता के लिए आवश्यक है जो कि एफडीआई और संयुक्त उद्यमों के माध्यम से घरेलू उत्पादन में वृद्धि करके प्राप्त किया जा सकता है”।
वे आगे कहते हैं, “अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मूल्यवर्धित उत्पादों के लिए एक नया बाजार बनाने में मदद करेगा जो भारतीय किसानों को अधिक लाभ कमाने में मदद करेगा”।
लेख पर गुस्से से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए और अमूल के एमडी के समर्थन में कनैयन सुब्रमण्यम नामक एक व्यक्ति ने ट्वीट किया, “मैं आर एस सोढ़ी के विचारों का पूरी तरह से समर्थन करता हूँ”। सुनील जैन नाम के एक अन्य व्यक्ति पूछते हैं कि क्या कोई इस लेख का प्रति-लेख लिखेगा।
प्रतीक गुप्ता नामक एक व्यक्ति ने उत्तेजित होकर लिखा कि, “सर आपको इस बारे में नीतिगत निर्णय को प्रभावित करने की आवश्यकता है। यह हमारे देश के डेयरी किसानों को बुरी तरह प्रभावित करेगा”। संजीव कपूर ने कहा कि “पूरी दुनिया भारत के “अमूल मॉडल” की नकल करना चाह रही है और श्री दास एण्ड कंपनी न्यूजीलैंड की पैरवी कर रही है”।
मंदार मैंडी नामक एक व्यक्ति कहते हैं, “जब डेयरी व्यवसाय की बात आती है, तो सोढ़ी साहब का शब्द अंतिम शब्द है। लेख बहुत ही पक्षपाती है और इसमें एक पक्षपातपूर्ण कथन बनाने की बू आ रही है”।
डॉ. लक्ष्मी ए. दवे कहती हैं, “मैं पूरी तरह से सहमत हूँ! लेख बताता है कि केवल भारत में घरेलू पर्यावरण संबंधी बाधाएँ हैं, न्यूजीलैंड में कोई नहीं! यदि पैसिफिक में उत्पादन में सुधार किया जा सकता है, तो भारत जैसा प्रचुर दूध वाला उपमहाद्वीप अनुमानित मांग को पूरा क्यों नहीं कर सकता है? …..”
उल्लेखनीय है कि पहले इन स्तंभों में हमने चर्चा की थी कि कैसे न्यूजीलैंड सरकार के प्रतिनिधि, उनके पैरवीकार और उनके आरसीईपी वार्ताकार उनके मामले को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।
परिणामस्वरूप, विभिन्न निकायों द्वारा प्रतिनिधित्व करने वाले किसानों ने अपने अभियान को तेज कर दिया है और मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री संजीव कुमार बाल्यान और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात की है।