एनसीयूआई की ओर से सहकारी संस्थाओं का एक विस्तृत डेटाबेस तैयार करने के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का भारतीय कार्यालय इससे नाखुश है और एक अधिकारी ने दावा किया कि भारत के पास देश में कार्यरत सहकारी समितियों और उनके वित्तीय विवरणों का समुचित डेटा नहीं है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईएलओ के सहकारिता उद्यम विभाग के इकाई प्रमुख सिमेल एसिम ने अहमदाबाद में ‘सेवा’ की ओर से आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा।
सेवा ने महिला सहकारी समितियों को मजबूत बनाने पर एक कार्यशाला का आयोजन किया था। हालांकि सेवा की चेयरपर्सन’ मिराई चटर्जी ने “भारतीयसहकारिता.कॉम” के प्रश्नों का जवाब नहीं दिया और हाल तक सेवा के एमडी रहे नमय महाजन ने प्रतिक्रिया की। उन्होंने लिखा, “मैंने वास्तव में सेवा को छोड़ दिया है और स्नातक विद्यालय जा रहा हूँ। आपसे सेवा को ईमेल करने का अनुरोध है। वे विवरण भेजने में सक्षम होंगे”।
आईएलओ के अवलोकन की बात करते हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, आईएलओ के आधिकारी ‘साइमेल एसीम’ ने कहा कि देश में सांख्यिकीय आंकड़ों की कमी है। रजिस्ट्रार ऑफिस और नेशनल कोऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन जैसी विभिन्न एजेंसियां हैं, लेकिन न तो वित्त पर जानकारी है और न ही सक्रिय सहकारी समितियों की संख्या है। हमें कुछ मानकों और दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है।
पाठकों को याद होगा कि कुछ साल पहले सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था एनसीयूआई ने सहकारी समितियों का एक विस्तृत डेटाबेस तैयार करने का काम किया था, जिसमें पता चला था कि देश में सहकारी समितियों की संख्या 6.10 लाख से 7.35 लाख के बीच है। दो केंद्रीय मंत्रियों की मौजूदगी में आईसीए एशिया और प्रशांत क्षेत्र की क्षेत्रीय सभा के दौरान “इंडियन कोऑपरेटिव मूवमेंट – ए स्टैटिस्टिकल प्रोफाइल” नामक पुस्तक जारी भी की गई थी।
यह सक्रिय सहकारी समितियों की संख्या है न कि निष्क्रिय, एन सत्यनारायण ने स्पष्ट किया जिन्होंने एनसीडीसी के पूर्व कार्यकारी निदेशक बदरुल हसन को काम सौंपा था। अध्ययन में यह भी पाया गया कि लगभग 50 हजार ऐसी सहकारी संस्थाएं हैं जो कागज पर तो हैं, लेकिन निष्क्रिय हैं।
प्रोफाइलिंग से यह भी पता चला कि व्यवहार्य/सक्रिय सहकारी समितियों के मामले में महाराष्ट्र सबसे ऊपर है। इसका आंकड़ा 2.46 लाख के करीब है जो दूसरे राज्यों से बहुत आगे है।
गुजरात में सहकारी आंदोलन काफी मजबूत है, जिसमें केवल 62 हजार सहकारी समितियां हैं; यह तेलंगाना से पीछे है जिसमें 65 हजार व्यवहार्य सहकारी समितियां हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दोनों की सहकारी समितियों की संख्या के मामले में बिहार आगे है। बिहार में 39 हजार समितिया हैं, जबकि यूपी और एमपी में क्रमश: 34 और 38 हजार हैं।
भाजपा शासित राज्य झारखंड सिर्फ 17 हजार समितियों के साथ सबसे नीचले पायदान पर है। यहां तक कि झारखंड में राज्य सहकारी संघ भी नहीं है।