सहकार भारती ने मंगलवार को मुंबई में शहरी सहकारी बैंकों की एक बैठक का आयोजन किया, जिसमें विभिन्न राज्यों के यूसीबी से जुड़े प्रतिनिधियों ने भाग लिया। आज अर्बन कॉपरेटिव बैंकिंग क्षेत्र पीएमसी बैंक में हुए घोटाले के बाद बनी नकारात्मक छवि से लड़ रहा है।
“भारतीयसहकारिता” को भेजे गए एक मेल में, सहकार भारती के राष्ट्रीय महासचिव उदय जोशी, जो कि शीर्ष निकाय नेफकॉब के बोर्ड में भी हैं, ने लिखा, “इस बैठक में 72 यूसीबी के 154 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। पांच राज्यों से प्रतिनिधियों ने शिरकत की”।
जोशी ने स्वयं प्रतिनिधियों का स्वागत किया और विस्तार से बताया कि कैसे पीएमसी प्रकरण ने विशेष रूप से यूसीबी सेक्टर को और सामान्य रूप से कॉप सेक्टर को प्रभावित किया है। “लेकिन यह समय धैर्य बनाए रखने और संगठित रहने का है”, जोशी ने कहा।
अपने भाषण में, जोशी ने कहा कि पीएमसी घटना के बाद लोगों में यूसीबी की विश्वसनीयता घटी है और बोर्ड में लेखा परीक्षकों, नियामकों, कॉप विभाग की जवाबदेही जैसे विषयों पर बहस शुरू हो गई है। धारा 35 को थोपना जमाकर्ताओं में घबराहट पैदा करता है क्योंकि यह एक बीमार बैंक के हाथों उनके पैसों के नुकसान का संकेत देता है।
इस अवसर पर बोलने वाले अन्य लोगों में नेफकॉब के अध्यक्ष ज्योतिंद्र मेहता शामिल थे, जिन्होंने संक्षेप में पीएमसी प्रकरण के बारे में बताया कि कैसे प्रबंधन ने पूरे घोटाले को अंजाम दिया। मेहता, जो सतीश मराठे और अन्य लोगों के साथ केंद्रीय वित्त मंत्री से मिले थे, ने भी इकट्ठे हुए सहकारी-संचालकों को आश्वासन दिया था कि अभी सब कुछ नहीं खोया है।
सतीश मराठे ने बीआर अधिनियम में यूसीबी से संबन्धित संशोधन की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए सत्र का समापन किया। उन्होंने महसूस किया कि आरबीआई को यूसीबी का पूर्ण नियामक नियंत्रण मिलना हमें ऐसी स्थिति से बचने में मदद कर सकता है जैसा कि पीएमसी बैंक के मामले में देखा गया है। मराठे स्पष्ट थे कि पीएमसी बैंक में जो हुआ वह मूल रूप से एक धोखा था न कि यूसीबी बैंकिंग प्रणाली की विफलता।
मराठे ने कहा कि अगर यूसीबी आंदोलन को और आगे ले जाना है तो प्रतिनिधियों को हर संभव प्रयास करना पड़ेगा जिससे व्यक्तिगत और संस्थागत जमाकर्ता दोनों सुरक्षित रह सकें।
बैठक में इस तथ्य पर भी जोर दिया कि यूसीबी में जमा राशि मुख्य रूप से बोर्ड के विश्वास और छवि के आधार पर जुटाई जाती है। प्रतिभागियों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है और उन्हें सूचित किया गया कि सहकार भारती ने इस मुद्दे पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को प्रतिवेदन सौंपा है।
सीए श्री जायेश शाह, सीए अजय ब्रम्हेचा, मिलिंद आरोल्कर, वकील चन्दक, श्री विलास देसाई, विवेक जुगाड़े और सी ए संतोष केलकर ने भी अपने विचार व्यक्त किए कि भविष्य में पीएमसी जैसी स्थिति से कैसे निपटा जाए।
संजय बिड़ला ने प्रतिनिधियों का धन्यवाद ज्ञापन किया, जिन्होंने सहकार भारती के निमंत्रण पर अल्प समय में ही बैठक में भाग लिया।