दिल्ली के शहरी सहकारी बैंकों की शीर्ष संस्था ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा है और व्यापक प्रचार के लिए “भारतीयसहकारिता” को इसकी एक प्रति भेजी है। पत्र में पीएमसी बैंक घोटाले, आरबीआई की भूमिका, केंद्रीय रजिस्ट्रार सहित सहकारी समितियों की भूमिका और डीआईसीजीसी की भूमिका शामिल है। पत्र के माध्यम से सहकारी क्षेत्र को बचाने के लिए पीएमओ के हस्तक्षेप का निवेदन किया गया है। हम उसी पत्र को निचे प्रस्तुत कर रहे हैं- संपादक:
“सचिव,
प्रधानमंत्री कार्यालय, साउथ ब्लॉक
रायसीना हिल; नई दिल्ली -110011
आदरणीय महोदय,
पीएमसी बैंक घोटाले से शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को बड़ा झटका लगा है। पीएमसी बैंक का संपूर्ण कामकाज ठप पड़ गया है, जिससे बैंक के जमाकर्ताओं को भारी कष्ट हो रहा है। और पूरे सहकारी बैंकिंग क्षेत्र पर इस संकट का व्यापक प्रभाव हैं। इसीलिए हमने आपके विचार के लिए मामले पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है, यथा –
- i) आरबीआई के आवधिक निरीक्षणों और लेखापरीक्षाओं में बैंक के लेन-देन में कुछ भी नहीं मिला था। हमें इस बात का पक्का संदेह है कि बैंक ने जानबूझकर आरबीआई को ऐसे तथ्यों और आंकड़ों तक पहुंचने नहीं दिया है, जो गलतियों को पकड़ सकते थे।
- ii) पीएमसी बैंक मामला बैंकिंग रेगुलेटरी अधिनियम, आरबीआई अधिनियम और आरबीआई दिशानिर्देश के तहत जारी किए गए निर्देशों के प्रावधानों का एक बड़ा उल्लंघन है। संकटग्रस्त बैंक का प्रशासक आईएएस कैडर का एक व्यक्ति होना चाहिए जिसके पास बैंकिंग/आर्थिक मामलों के मंत्रालय का अनुभव हो। संयोग से, आरबीआई अधिकारियों को ऐसे मामलों में बहुत कम अनुभव है।
उसी तरह, सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार-जनरल आरबीआई के कार्यकताओं की तुलना में पीएमसी बैंक मामले को संभालने में अधिक प्रभावी होंगे।
हमारे सुझाव इस प्रकार हैं –
- i)आरबीआई के पास कानून के तहत इस तरह के धोखाधड़ी को नियंत्रित करने/रोकने और समाधान प्रदान करने के लिए पर्याप्त शक्तियाँ हैं। संबंधित कानूनों में संशोधन की कोई तत्काल आवश्यकता प्रतीत नहीं हो रही है।
- ii)राज्य सरकार रजिस्ट्रार/सेंट्रल रजिस्ट्रार कार्यालय एक शहरी को-ऑप बैंक के सदस्यों की संख्या और इनकी जमा राशि पर एक सीमा निश्चित कर सकता है, जिससे कि ठीक से प्रबंधन हो सके।”