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पीएमसी संकट से उभरने के लिए कृष्ण ने बताया उपाय

अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों की शीर्ष संस्था नेफकॉब के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी डी कृष्णा ने महाराष्ट्र सरकार में मंत्री जयंत पाटिल को एक पत्र दिया है। चुंकि कृष्णा यूसीबी क्षेत्र से जुड़े मुद्दों के विशेषज्ञ माने जाते हैंइसलिए हम अपने पाठकों के लिए पत्र प्रस्तुत कर रहे हैं- संपादक     

“माननीय श्री जयंत पाटिल,

विषय: पीएमसी बैंक के तीन लाख जमाकर्ताओं का डिपॉजिट सुरक्षित करने के लिए उपाय

महोदय!

     मैं नेशनल फेडरेशन ऑफ अर्बन कोऑपरेटिव बैंक्स एंड क्रेडिट सोसाइटीज (नेफकॉबका सेवानिवृत्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी हूँ। मैं लगभग दो दशकों से शहरी सहकारी बैंकों के विनियामक विकास से जुड़ा रहा हूँ और इस अवधि में शहरी सहकारी बैंकों पर आरबीआई द्वारा गठित कई समितियों/कार्य समूहों में भी रहा हूँ। मैं तीन साल तक महाराष्ट्र और गोवा राज्य के एपेक्स अर्बन कोऑपरेटिव बैंक में लिक्विडेटर भी रहा।

मैंने पीएमसी बैंक के जमाकर्ताओं को राहत देने के लिए राज्य सरकार की ओर से महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक के साथ विलय करने के बारे में पढ़ा और इस संदर्भ में आपको कुछ सुझाव दे रहा हूँ।

पीएमसी बैंक एक बहु-राज्य शहरी बैंक है और केंद्र सरकार के अधीन है। हालाँकिबैंक के अधिकांश जमाकर्ता महाराष्ट्र राज्य से हैं और इसलिए यह बात गौर करने लायक है कि राज्य सरकार बैंक के जमाकर्ताओं की मदद करने के लिए क्या कर रही है।

महोदय! पीएमसी बैंक की विफलता केवल एक और सहकारी बैंक की विफलता का मामला नहीं है। इसने कई सवालों को खड़ा किया है जिसका जवाब आरबीआई और सरकार दोनों को देना होगा। जैसे किसहकारी बैंकों के जमाकर्ताओं को असहाय क्यों छोड़ दिया जाता हैजबकि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों पर आरबीआई द्वारा अच्छी तरह से ध्यान रखा जाता है; डीआईसीजीसी को संपत्ति पर पहला अधिकार क्यों होना चाहिए और जमाकर्ताओं के लिए बचा-खुचा, यदि कोई हो, छोड़ दिया जाए। बड़े कॉरपोरेटों के एनपीए को पीएसयू बैंकों द्वारा क्यों खत्म किया जाता हैजबकि सहकारी बैंकों को कोई समर्थन नहीं दिया जाता हैजबकि वे छोटे और गरीब तबके वाले लोगों की सेवा करते हैं?

जहां तक राज्य सरकार का सवाल हैआपने सही कहा है कि यह जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए तरीके खोजेगी। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि कांग्रेस और राकांपा का महाराष्ट्र के सहकारी बैंकों के साथ एक गहरा रिश्ता है और सहकारी समितियों को समझना उनको अच्छे से आता है।

महोदयविशेष रूप से पीएमसी बैंक के लिएमेरे पास निम्नलिखित अवलोकन और सुझाव हैं:

1. यदि महाराष्ट्र सरकार जमाकर्ताओं की मदद करने के लिए इच्छुक है तो कृपया इसे जल्द से जल्द किया जाए।

2. एमएससी बैंक व्यक्तियों को सदस्यों के रूप में नामित नहीं कर सकता हैइसलिए पीएमसी बैंक के सदस्य एमएससी बैंक के सदस्य नहीं बन सकते हैं। चूंकि पीएमसी बैंक की नेटवर्थ नकारात्मक हैइसलिए इसके शेयरों का कोई मूल्य नहीं है।

    पीएमसी बैंक की संपत्तियों और देनदारियों को एमएससी बैंक अधिगृहीत कर सकता है।

3. रिपोर्ट के अनुसार,    वर्तमान में 8500 करोड़ के अग्रिमों में से 6500 करोड़ रुपये के एनपीए के साथ पीएमसी बैंक को 4500 करोड़ रुपये से अधिक की हानि हो सकती है। इस स्थिति मेंएमएससी बैंक इसे लेने के बारे में सोच भी नहीं सकता।

4. दो काम करने होंगे,

क)           डीआईसीजीसी को 4500 करोड़ रुपये के बीमित जमा के भुगतान की देयता को पूरा करना चाहिएजिससे जमाकर्ताओं के लगभग 80 प्रतिशत का भुगतान होगा। शेष जमाकर्ता, जिनकी संस्थागत जमकर्ता सहित संख्या 2.25 लाख है, की राशि रुपये 7,000 करोड़ रुपये की होगी। अगर पीएमसी बैंक का परिसमापन होता है तो ये सभी जमाकर्ताओं का पूरा पैसा डूब जाएगा।

      डीआईसीजीसी अधिनियम के वर्तमान प्रावधानों के अनुसारबैंक के पास मौजूद परिसंपत्तियों की बिक्री से प्राप्त आय सबसे पहले डीआईसीजीसी को 4500 करोड़ रुपये चुकाने के लिए उपयोग की जाएगी और जो भी इस राशि से अधिक हैआनुपातिक रूप से जमाकर्ताओं और अन्य असुरक्षित लेनदारों के बीच वितरित की जाएगी।

      रिपोर्टों में यह कहा जा रहा है कि ईडी ने निदेशकों की 6500 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर ली है। यदि परिसंपत्तियों का निपटान तेजी से किया जाता है और उस की बिक्री से प्राप्त आय 4,000 रुपये करोड़ होती हैतो यह राशि डीआईसीजीसी को भुगतान करने के बजाय बैंक के नुकसान को कम करने के काम आ सकती है।

      इस स्तर पर महाराष्ट्र सरकार आरबीआई/डीआईसीजीसी के साथ काम करके एमएससी बैंक द्वारा पीएमसी बैंक के अधिग्रहण का प्रस्ताव कर सकती है कि डीआईसीजीसी को 6वें साल से शुरू होने वाले 15 समान वार्षिक किश्तों में 20 साल में एमएससी बैंक द्वारा उसका बकाया चुकाया जाएगा। इसके लिए महाराष्ट्र सरकार एमएससीबी की ओर से डीआईसीजीसी को बैंक गराण्टी प्रदान करने पर विचार कर सकती है।

ख) अधिग्रहण की शर्तों में एक समझौता शामिल हो सकता है –

·     सभी संस्थागत जमाकर्ताओं को उनकी जमा राशि 15 वर्षों में चुकानी  होगी, जो 6वें वर्ष से शुरू होगी। ब्याज दर@ 6% सालाना निश्चित होगी.

·  उपरोक्त आंकड़े सन्निकटन और अपुष्ट हैं। वास्तविक स्थिति का पता महाराष्ट्र सरकार द्वारा आरबीआई से लगाया जाना है।

पीएमसी बैंक के मामले को सुलझाने में देरी जमाकर्ताओं को महंगी पड़ रही है। वेतनओवरहेड्स सहित पीएमसी बैंक का खर्च हर महीने जमा को और भी कम कर रहा है।

महाराष्ट्र सरकार देश में शहरी सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को बढ़ावा देने में अच्छा काम कर रही है। यदि यह पीएमसी बैंक समस्या का समाधान खोजती है तो बहुत बड़ा उपकार होगा।

आदर के साथ,

भवदीय,

डी कृष्णा

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