सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था एनसीयूआई की गवर्निंग काउंसिल की बैठक 26 दिसंबर यानी गुरुवार को अमृतसर में सम्पन्न हुई, जिसमें चुनाव की तारीख के बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाना था। लेकिन निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के खिलाफ एनएलसीएफ द्वारा दायर मध्यस्थता की कार्यवाही के मद्देनजर केंद्रीय रजिस्ट्रार के एक पत्र ने स्थिति को बदल दिया है।
केंद्रीय रजिस्ट्रार ने एनसीयूआई को निर्वाचन संबंधी कोई भी निर्णय नहीं लेने और निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के मुद्दे पर 3 जनवरी तक जवाब देने को कहा है।
“भारतीयसहकारिता” से बात करते हुए एनसीयूआई के अध्यक्ष डॉ चंद्र पाल सिंह यादव ने कहा, “हां हमें एक पत्र मिला है। हम चुनाव के मुद्दों पर चर्चा करेंगे लेकिन केंद्रीय रजिस्ट्रार ने अंतिम फैसला लेने से मना किया है। मध्यस्थ को जवाब देने के मुद्दे पर, यादव ने कहा कि हमारे वकील वीपी सिंह मध्यस्थ के समक्ष एनसीयूआई मामले का प्रतिनिधित्व करेंगे। हालांकि यादव इससे नाखुश थे और उन्होंने कहा कि शीर्ष सहकारी निकाय में समय पर चुनाव कराना महत्वपूर्ण है।
एनसीयूआई के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा कि वर्तमान जीसी का कार्यकाल फरवरी में समाप्त हो रहा है और चुनावों की देखरेख के लिए चुनाव ऑफिसर की नियुक्ति का निर्णय लिया जाना था। पाठकों को याद होगा कि मंत्रालय ने इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की है।
भारतीय सहकारिता से एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी एन सत्यनारायण ने बात करते हुए कहा कि, “हमने केंद्रीय रजिस्ट्रार को आरओ के अनुमोदित नामों की सूची के लिए पत्र लिखा है, वही जीसी के सामने प्रस्तुत किया जाना था जो इस मामले पर निर्णय लेने के लिए सर्वोच्च निकाय है”।
चुनाव अधिकारी के नामों पर भारतीय सहकारिता को प्राप्त खबर के मुताबिक सेंट्रल रजिस्ट्रार ने केवल दो नामों को पैनल में नामित किया है जिसमें से एनसीयूआई को चुनना है। ये नाम भोपाल और ग्वालियर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों के हैं।
एनसीयूआई से जुड़े नेता संस्था में समय से चुनाव कराने की दिलचस्पी रखते हैं। वहीं अधिनियम के मुताबिक, कार्यकाल की समाप्ति के तीन महीने के भीतर एक नए बोर्ड का गठन किया जाना है। लेकिन मध्यस्थता उसके स्थगन का कारण बन सकती है, एक सहकारी नेता ने कहा।
इसके अलावा, चुनाव से पहले कई प्रक्रिया जैसे मतदाता सूची तैयार करना समेत अन्य होती हैं। सूत्रों का कहना है कि फरवरी तक चुनाव कराना मुश्किल है।