मध्य प्रदेश के आठ जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति काफी कमजोर हालत में पहुँच गयी है और वे दिवालिया होने की कगार पर हैं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) उन्हें पुनर्वित्त नहीं दे रहा है।
कमजोर आर्थिक स्थिति के मद्देनजर, 24 दिसंबर 2019 को ग्वालियर में इन आठ जिला सहकारी बैंकों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की एक बैठक बुलाई गई थी।
ग्वालियर, दतिया, मुरैना, रीवा, सतना, सीधी, होशंगाबाद और रायसेन जिलों में ये बैंक गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं। वे बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 11(1) का पालन करने में असमर्थ हैं।
इस धारा के अनुसार, यदि सहकारी बैंकों की पेड-अप शेयर पूंजी एक लाख रुपये से कम हो जाती है, तो वे बैंकिंग नहीं कर पाएंगे।इसका मतलब है कि इन बैंकों की कुल संपत्ति एक लाख रुपये से भी कम हो गई है।
इन जिला सहकारी बैंकों का औसत एनपीए (गैर निष्पादित परिसंपत्तियां) लगभग 25 प्रतिशत है। नाबार्ड ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया है क्योंकि वे अयोग्य हो गए हैं।
बताया जा रहा है कि राज्य में 38 जिला सहकारी बैंक हैं, जिनमें से लगभग दो दर्जन बैंक खतरे में हैं।
चार हजार पैक्स समितियों में से, 3200 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियाँ (पैक्स) घाटे में हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसी स्थिति बोर्ड के सदस्यों द्वारा कुप्रबंधन के कारण पैदा हुई है।
ये बैंक 95 प्रतिशत कृषि ऋण ऋण प्रदान करते हैं। ऋणों की वसूली कठिन है। ऋण माफी योजना का इन बैंकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
मध्य प्रदेश में सरकार बदलने के बाद, जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों के बोर्ड को निलंबित कर दिया गया है।