फैली अफवाहों के बीच यह साफ हो गया कि सहकारी समितियों की शीर्ष संस्था एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एन सत्यनारायण अपने पद पर बने रहेंगे और इनके नाम पर संस्था के अध्यक्ष चंद्रपाल सिंह यादव ने अपनी मुहर लगा दी है। अफवाह थी कि वे अब ज्यादा दिन सीई के पद पर नहीं रहेंगे।
एनसीयूआई की शिक्षा विंग एनसीईसी के हेड वी के दुबे ने कहा कि एन सत्यनारायण का कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त हो गया था लेकिन एक जारी आदेश के मुताबिक वह सीई के पद पर बने रहेंगे। वर्तमान सीई की सराहना करते हुए दुबे ने कहा कि सत्यनारायण के कार्यकाल में सहकारी-शिक्षा का व्यापक रूप से विस्तार हुआ है और अब पड़ोसी देशों के सहकरी संचालको को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है।
अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि दिसंबर में आयोजित गवर्निंग काउंसिल की अमृतसर में हुयी बैठक में उनके नाम पर मुहर लगाई गई थी।
फिर भी एनसीयूआई के अधिकारी चुप्पी साधे हुए थे क्योंकि वे आदेश पर संस्था के अध्यक्ष चन्द्र पाल सिंह के हस्ताक्षर का इंतजार कर रहे थे। अध्यक्ष ने शुक्रवार की शाम को हस्ताक्षर किया, जिससे सीई के प्रशंसकों में खुशी की लहर दौड़ गई।
सत्यनारायण अपनी पारदर्शी और सरल कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं। उनके विरोधी भी हैं जिनमे से अधिकतर सरकारी बाबू हैं क्योंकि उनमें से कई एनसीयूआई का सीई बनने का ख्वाब देखते हैं।
इससे पहले, जब एनसीयूआई ने नए सीई के पद का विज्ञापन दिया था तो अधिकांश आवेदकों को आयु और अनुभवों के आधार पर पैनल द्वारा अस्वीकार किया गया। यह कहा जाता है कि केवल एनसीसीटी सचिव मोहन मिश्र के आवेदन को ही मंजूरी दी गई थी।
हालंकि मिश्र का मामला किसी भी तरह से कमतर नहीं है क्योंकि उनके बारे में कहा जाता है कि वे एक निष्पक्ष व्यक्ति हैं। हालांकि, वह एनसीयूआई का हिस्सा नहीं होने का दावा करते हैं, एनसीयूआई के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें अभी भी एनसीयूआई से एक रिलीज सर्टिफिकेट लेना है। एनसीयूआई नेताओं के लिए उनकी अरुचि को देखते हुए, उन्हें सर्टिफिकेट दिये जाने की संभावना कम ही है।
सत्यनारायण का भविष्य कुछ साल पहले अनिश्चित लग रहा था, जब वह 60 वर्ष के हो गये थे। अफवाह फैलाने वालों ने उनकी सेवानिवृत्ति की भविष्यवाणी करना शुरू कर दिया था इस तथ्य के बावजूद कि सीई का कार्यकाल 62 की उम्र तक होता है। जीसी को 2018 में उनके सेवा-विस्तार के लिए एक प्रस्ताव पारित करना था।
सत्यनारायण के दोस्तों का कहना है कि वह एक प्रशिक्षित चार्टर्ड एकाउंटेंट है जो निदेशक (वित्त) के रूप में भी एनसीयूआई में कार्य करते हैं। उनके जाने का मतलब दो व्यक्तियों – सीई और निदेशक (वित्त) – की नई नियुक्ति करनी है जिसमें एनसीयूआई का प्रतिवर्ष 50 लाख रुपये का खर्च आएगा। लेकिन वे यह समझाने में विफल रहते हैं कि किसी व्यक्ति को किसी पद पर हमेशा के लिए रखना कैसे संभव है।