आर्बिट्रेटर वृति आनंद द्वारा सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था एनसीयूआई द्वारा दायर याचिका की मेंटेनेबिलिटी पर उठाये हुये बिंदुओं के खारिज होने के बाद, एनसीयूआई याचिका की मुख्य बातों पर जवाब देने को मजबूर हो गया है।
बता दे कि कुछ दिन पहले एनसीयूआई में निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के मामले में नेशनल लेबर को-ऑप फेडरेशन (एनएलसीएफ़) और अशोक डबास ने याचिका दायर की थी।
इससे पहले, एनसीयूआई ने याचिका को चुनौती देते हुये आर्बिट्रेटर के समक्ष कहा था कि याचिका मेंटेनेबिलिटी योग्य नहीं है और केंद्रीय रजिस्ट्रार के पास एनसीयूआई बोर्ड द्वारा चुनावों पर फैसला लेने से रोकने का आदेश पारित करने का कोई अधिकार नहीं है।
“जब एनसीयूआई अपने उप-नियमों में संशोधन करने में सक्षम है तो किसी भी अदालत में इस बात को लेकर याचिका कैसे दायर की जा सकती है? साथ ही इन संशोधनों को सेंट्रल रजिस्ट्रार के कार्यालय से भी हरी झंडी मिल गई थी; ऐसे में गलत क्या है”, एनसीयूआई के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा।
जब हरी झंडी केंद्रीय रजिस्ट्रार ने खुद ही दी थी तो वो कैसे आर्बिट्रेटर बहाल कर सकते हैं, अधिकारी ने पूछा “कानून तो इस मामले में केंद्रीय रजिस्ट्रार को भी पार्टी बनाया जाना चाहिए”, उन्होंने रेखांकित किया।
आर्बिट्रेटर वृति आनंद ने एनसीयूआई के दावे को खारिज कर दिया है और उसे याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए बिंदुओं पर लिखित जवाब देने के लिए कहा है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि सर्वोच्च निकाय द्वारा तैयार जवाब में याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी प्रश्नों के जवाब तैयार हो गये हैं। एक अधिकारी ने कहा, “यह 200 से अधिक पृष्ठों का है।”
अगली सुनवाई 14 फरवरी को होनी है परंतु कानूनी प्रक्रिया से परिचित लोगों का कहना है कि मामला कुछ समय के लिए लंबित हो सकता है। उन्होंने कहा, “एनसीयूआई स्टेटमेंट ऑफ डिफेंस याचिकाकर्ताओं को भेजेगा। इस बाद याचिकाकर्ता इस पर अपना जवाब भेजंगे और इस मामले को सुलझने में वक्त लगेगा। पक्षों के बीच लिखित जवाबों के आदान–प्रदान के बाद सुनवाई शुरू होगी।
एक अंदरूनी सूत्र ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया जल्द पूरी होने के बाद भी चुनाव में 2-3 महीने लग सकते हैं और एनसीयूआई के निर्धारित चुनाव में देरी होना लगभग तय है। वर्तमान बोर्ड का कार्यकाल मार्च 2020 को समाप्त हो रहा है।
इससे पहले, एनसीयूआई को चुनाव संबंधी कोई भी निर्णय नहीं लेने का आदेश देते हुए, आर्बिट्रेटर ने आदेश दिया था कि दावेदार प्रथम दृष्टया मामला कायम करने में सक्षम हुये है। आर्बिट्रेटर ने निर्देश दिया था कि गवर्निंग काउंसिल के गठन के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया जाये।
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि एनसीयूआई के निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन से देश में सहकारी आंदोलन कमजोर होगा। याचिकाकर्ता अशोक डबास का आरोप है कि प्रस्तावित बदलाव एनसीयूआई में कमजोर वर्गों की सहकारी समितियों के प्रतिनिधित्व को और अधिक कमजोर करेगा।
कई महत्वपूर्ण सहकारी क्षेत्र, जिसमें हाउसिंग, डेयरी, शुगर, कंज्यूमर के साथ-साथ कमजोर सेक्टर जैसे लेबर, फिशरीज और ट्राइबल को-ऑपरेटिव को भी शामिल किया गया है जो कई सहकारी क्षेत्रों को एनसीयूआई में प्रतिनिधित्व से वंचित कर देगा, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था।