ताजा खबरेंविशेष

येस बैंक – पीएमसी: मेहता ने कहा आरबीआई का रवैया भेदभाव पूर्ण

आरबीआई ने 13 मार्च, 2020 को सहकारी बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े प्रतिनिधियों और नेफकॉब की अपेक्षाओं के विरुद्ध ‘एक्सपोज़र नॉर्म्स और प्राथमिकता क्षेत्र उधार मानदंडों’ को संशोधित करते हुए एक परिपत्र जारी किया है, नेफकॉब के अध्यक्ष ज्योतिंद्र मेहता ने शिकायत करते हुए कहा।

मेहता सहकार भारती के संरक्षक भी हैं। उन्होंने बताया कि विषय पर मसौदा दिशानिर्देशों के लिए सुझाव देने की निर्धारित अवधि के पूरा होने के तुरंत बाद, आरबीआई ने शीघ्र ही परिपत्र जारी कर दिया, जो नियामक के पूर्वाग्रह को दर्शाता है।

“हितधारकों के विचारों को केवल एक औपचारिकता के रूप में सुना गया। इस कदम को अंतिम रूप देने में काफी जल्दीबाजी की गयी है, जिसका बैंकों पर भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस कदम से बैंकों की उधारकर्ता प्रोफाइल और लाभप्रदता में व्यापक बदलाव हो सकते हैं”, मेहता ने रेखांकित किया।

इन दिनों यूसीबी क्षेत्र में चर्चा चल रही है कि बैंक न केवल अच्छे ग्राहकों को खो देंगे, बल्कि नए उधारकर्ताओं का मिलना भी मुश्किल हो जाएगा। इससे 900 से अधिक छोटे आकार वाले यूसीबी काफी प्रभावित होंगे क्योंकि मध्यम वर्ग के उधारकर्ताओं को उधार देने की उनकी क्षमता कम हो जाएगी।

मेहता को लगता है कि आरबीआई का यह कदम मनमाना है। वह कहते हैं कि इसकी वैधता पर बहस की जा सकती है क्योंकि यह इन बैंकों के लाइसेंस की शर्तों में बदलवाल कर रहा है। मेहता ने आगे कहा कि सहकारी बैंकिंग क्षेत्र पीएमसी घोटाले के मद्देनजर पहले से ही चुनौतियों का सामना कर रहा है।

नेफकॉब अध्यक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि आरबीआई यूसीबी के जमाकर्ताओं के साथ भेदभाव करती है। उन्होंने आगे कहा कि यस बैंक और पीएमसी बैंक के  मामले इसका जीता जागता उदाहरण है, जिसमें एक तरह का मामला होने पर भी अलग-अलग तरह से व्यवहार किया गया। आरबीआई पर घोर भेदभाव का आरोप लगाते हुए मेहता ने कहा कि आरबीआई शहरी बैंकों के विकास के मार्ग में नियामक बाधाएं पैदा करता है।

इस पृष्ठभूमि में, एक्सपोज़र नॉर्म्स पर यह सर्कुलर आरबीआई का एक और उदाहरण है, जो बिना किसी तर्कसंगत कारण के शहरी बैंकों के लिये मुश्किलें खड़ा कर रहा है।

आरबीआई चाहता है कि लघु वित्त बैंकों के सभी ऋण मानदंडों को शहरी सहकारी बैंकों पर लागू किया जाए। इसने यूसीबी को प्राथमिकता क्षेत्र के अग्रिमों को 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने के लिए कहा है और साथ ही यूसीबी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि उनके कुल ऋण का 50 प्रतिशत 25 लाख  रुपये या उससे कम या उनकी टीयर-I पूंजी का 0.2 प्रतिशत के बराबर या उससे कम हो (अधिकतम 1 करोड़ रुपये)।

नेफकॉब के अध्यक्ष ने दावा किया कि उनका अवलोकन कई शहरी सहकारी बैंकों के साथ उनकी बातचीत पर आधारित है। “सभी ने महसूस किया कि आरबीआई के इन निर्देशों का बैंकों के कामकाज, लाभप्रदता और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वाला है”, उन्होंने कहा।

दिलचस्प बात यह है कि मालेगाम समिति की रिपोर्ट के अनुसार, शहरी सहकारी बैंकों के 90 प्रतिशत ऋण खातों की संख्या का मूल्य लगभग 5 लाख रुपये से कम है। बड़ी संख्या में बैंक इतने छोटे होते हैं कि उनकी टीयर-I पूंजी भी बहुत कम होती है, जिसका अर्थ है कि नए एक्सपोज़र मानदंड उनके व्यक्तिगत उधारकर्ता ऋण सीमा को और अधिक सीमित कर देंगे, जिसके चलते छोटे उधारकर्ता प्रभावित हो सकते हैं।

इस सब से यह स्पष्ट लगता है कि आरबीआई परिस्थितियों का निर्माण करके यथासंभव अधिक से अधिक शहरी बैंकों का निजीकरण करना चाहता है जो उन्हें छोटे वित्त बैंकों में परिवर्तित होने के लिए मजबूर करेगा।

ऐसी आशंका है कि आरबीआई का लक्ष्य शहरी सहकारी बैंकों के स्थान पर अधिक छोटे वित्त वाले निजी बैंक लाने का है। “नियामक नीतियां ऐसी नहीं होनी चाहिए कि वे सहकारी संस्थाओं जैसे समुदाय-आधारित संस्थानों की कीमत पर निजी संस्थाओं को प्रोत्साहित करें, विशेष रूप से जहां देश में इतने बड़े असंगठित क्षेत्र और सूक्ष्म और छोटी इकाइयां हैं जिन्हें दोस्ताना समुदाय-आधारित बैंकों की आवश्यकता है”, मेहता ने निष्कर्ष निकालते हुये कहा।

Tags
Show More

Related Articles

Back to top button
Close