उत्तर प्रदेश की सहकारी समितियों में सपा सरकार के दौरान हुयी फर्जी नियुक्तियां इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में बनी हुई हैं । बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने पद संभालने के बाद सहकारी समितियों में हुई भर्तियों की जांच का आदेश दिया और जांच के लिए विशेष जांच दल [एसआईटी] का गठन किया गया था।
अपनी जांच में एसआईटी ने एक बड़ी धोखाधड़ी का पता लगाया और इस संदर्भ में एसआईटी ने राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
ओएमआर शीट में चूक के फॉरेंसिक सबूत के आधार पर, टीम ने मामले में एफआईआर की सिफारिश की है।
दरअसल, 2012-2017 के बीच अखिलेश सरकार ने उत्तर प्रदेश सहकारी भूमि विकास बैंकों, उत्तर प्रदेश राज्य भंडारण निगम और उत्तर प्रदेश सहकारी बैंकों में भर्ती के लिए 49 विज्ञापन जारी किए, जिसमें से 40 विज्ञापनों में भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी।
प्रबंधक, उप-महाप्रबंधक, सहायक प्रबंधक, सहायक शाखा विश्लेषक, सहायक क्षेत्र अधिकारी, सहायक प्रबंधक (कंप्यूटर), वरिष्ठ शाखा प्रबंधक, क्लर्क और अन्य सहित विभिन्न पदों के लिए 2,343 से अधिक व्यक्तियों की भर्ती की गई।
ऐसी रिपोर्टें हैं कि एक ही विधानसभा क्षेत्र से 30 से अधिक व्यक्तियों को भर्ती किया गया।
सपा सरकार पर आरोप है कि विज्ञापन जारी होने के बाद नियमों में बदलाव किया गया। कुछ लोगों को लाभ देने के लिए शैक्षिक योग्यता कम की गई। 53 सहायक प्रबंधकों की नियुक्ति में, एक विशेष जाति के लोगों और एक विशेष वीआईपी विधानसभा के लोगों को विशेष प्राथमिकता दी गई थी। अधिकारियों ने अपने बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को भर्ती किया।
यूपी कोऑपरेटिव बैंक के तत्कालीन प्रबंध निदेशक रविकांत सिंह कथित रूप से भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल थे, जिन्हें योगी सरकार ने निलंबित कर दिया था। एसआईटी ने सहकारी बैंकों के तत्कालीन एमडी सहित कई अन्य अधिकारियों को हटाने की भी सिफारिश की थी।