अर्बन कॉपरेटिव बैंकिंग क्षेत्र में एक जाना-माना नाम डी कृष्णा ने बताया कि, बैंकिंग विनियमन (संशोधन) बिल 2019 आरबीआई को कई अधिकार प्रदान करता है, इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों की तुलना शहरी सहकारी बैंकों के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगा।
कृष्णा ने शहरी सहकारी बैंकों की समस्याओं को उजागर करते हुए, आरबीआई को “शहरी सहकारी बैंकों के लिए आगे का रास्ता” नाम से एक पत्र भेजा है जिसकी एक कॉपी भारतीय सहकारिता के पास भी है।
उनका कहना है कि आरबीआई द्वारा खासकर शहरी बैंकिंग क्षेत्र के लिए लिये गए कई फैसले, जिसके बारे में इस क्षेत्र ने स्पष्ट कहा है कि, बिल पास होने और अधिसूचित होने के बाद वापस ले लिये जाने चाहिए।
कृष्णा का कहना है कि वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में यूसीबी क्षेत्र के साथ अलग तरह का व्यवहार किया जाता हैं। यूसीबी के जमाकर्ताओं के साथ भी वाणिज्यिक बैंकों के जमाकर्ता की अपेक्षा भिन्न और गलत व्यवहार किया जाता है।
दोनों की तुलना करते हुए, कृष्णा ने कहा, “यस बैंक के जमाकर्ताओं को दी गई राहत और पीएमसी बैंक के जमाकर्ताओं के प्रति दिखाया गया सख्त रवैया, आरबीआई के दोहरे मापदंड को उजागर करता है। हालांकि दोनों बैंकों के मामले आश्चर्यजनक ढंग से समान थे।समानता इस हद तक है कि एक ही व्यापारिक घराने ने दोनों बैंकों को ठगा है।
शहरी बैंकों के साथ अलग व्यवहार करने के लिए आरबीआई द्वारा दिया गया मुख्य कारण था कि, आरबीआई के पास सहकारी बैंकों को पटरी पर लाने के लिये उतना अधिकार नहीं है, जितना कि उनके पास वाणिज्यिक बैंकों के लिए होता है। उन्होंने कहा कि विधेयक के पारित होने के साथ परिदृश्य बदल सकता है।
डी कृष्णा के अनुसार, निम्नलिखित निर्णय प्रश्नगत हैं:
i. बैंकों को प्रबंधन बोर्ड (बीओएम) का गठन करने का परिपत्र वापस लेना चाहिए क्योंकि आरबीआई का अब खुद निदेशक मंडल पर पूरा नियंत्रण होगा और विवादास्पद बीओएम, जिसका क्षेत्र द्वारा कड़ा विरोध किया गया था, अब निरर्थक हो गया है।
ii. पूर्ण विनियामक नियंत्रण के साथ, आरबीआई को विशेष रूप से शहरी बैंकों के लिए अतिरिक्त परिचालन दिशाओं की आवश्यकता नहीं है और इसलिए उस परिपत्र को वापस लेना चाहिए जो एकल पार्टी और समूह जोखिम मानदंडों को कम करता है, जो शहरी बैंकों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करने आमादा थे।
iii. इसके अलावा, परिपत्र में निर्देश शहरी बैंकों से अपने उधारकर्ताओं के प्रोफाइल को एसएफ़बी के साथ मिलाने और प्राथमिकता क्षेत्र को उधार में 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करने और 25 लाख या कम उधार देने वाले छोटे उधारकर्ताओं को कम से कम 50 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए कहा गया है, जिससे ऋण पोर्टफोलियो के परिणामस्वरूप, बैंकों को बड़े झटकों का सामना करना पड़ेगा। आरबीआई को अधिक नियामक और पर्यवेक्षी शक्तियों से लैस होने के बाद इस परिपत्र को भी वापस लेना होगा।
कृष्णा ने आगे कहा कि बैंकिंग विनियमन संशोधन और अम्ब्रेला संगठन का गठन इस क्षेत्र के लिए लंबे समय से दो सबसे महत्वपूर्ण प्रगति है।
आरबीआई ने एनबीएफ़सी के रूप में अम्ब्रेला संगठन के गठन के लिए स्वीकृति प्रदान की है। अतः इसके गठन और संचालन की सफलता में आरबीआई को सहायक होना चाहिए क्योंकि आने वाले दिनों में यह एक स्व-नियामक संगठन की भूमिका निभाएगा, इसके अलावा शहरी बैंकों के लिए कई तरह के कोष और गैर-निधि आधारित विशिष्ट सेवाएं प्रदान करेगा, उन्होंने निष्कर्ष निकालते हुये कहा।