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आर्बिट्रेटर: एनसीयूआई मामले पर निर्णय अगले हफ्ते

एनसीयूआई के निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के मामले में चिर प्रतीक्षित निर्णय (अवार्ड) शुक्रवार को जारी नहीं किया गयाक्योंकि दोनों पक्ष आर्बिट्रेटर श्रीमती वृति आनंद को फीस जमा करने में विफल रहे। 

हालांकि आर्बिट्रेटर ने फैसला सुरक्षित रखा और एक हफ्ते बाद सुनवाई करेगी। सूत्रों ने बताया कि इस बीच एनएलसीएफ, अशोक डबास और एनसीयूआई को फीस की बकाया राशि का भुगतान करने को कहा गया है।

इस प्रगति पर प्रतिक्रिया देते हुए एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एन सत्यनारायण ने कहा, “हम अपने अधिवक्ता की सलाह से चलते हैं जिन्होंने कहा था कि अभियोगी की फीस बाकी है”।

जैसा कि डबास ने पहले ही मामला वापस ले लिया है और एनसीयूआई को निर्णय के बारे में पहले से ही जानकारी है और ऐसे फैसले के लिए फीस के भुगतान की कोई उत्सुकता नहीं है जो किसी भी तरह से निष्प्रभावी हो गया हैएक स्रोत ने भारतीयसहकारिता से कहा।  

डबास के लिए फीस का भुगतान कम चुनौतीपूर्ण नहीं है क्योंकि वह पहले ही एनएलसीएफ़ के कट्टर नेता संजीव कुशालकर के साथ शीर्ष सहकारिता महासंघ में उनके द्वारा थोपे गए छद्म अध्यक्ष के मुद्दे पर पहले ही उलझ चुके हैं। सूत्रों ने कहा कि एनएलसीएफ के मामले में कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं होने के कारणडबास के लिए फीस का भुगतान करना मुश्किल हो सकता है। 

एक कानूनी विशेषज्ञ ने कहा, “भले ही मालूम हो, फैसला इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि कोई व्यक्ति उस के खिलाफ अपील नहीं कर सकता जब तक कि उसे औपचारिक रूप सेजारी न किया जाए।”

इस बीच सूत्रों ने बताया की एनसीयूआई के साथ डबास की बैठक नहीं हुई। जब भारतीयसहकारिता ने डबास द्वारा बताई गई जानकारी के बारे में पूछा, तो सी ई ने कहा, “कौन सी बैठककब?” स्मरणीय है कि डबास ने भारतीयसहकारिता को बताया था कि फैसले से एक घंटे पहले पिटीशन की वापसी के अंतिम तौर-तरीकों पर चर्चा की जाएगी।

इससे पहले डबास ने याचिका वापसी के पीछे कोई ठोस तर्क नहीं दिया था और कहा कि “यह मेरी सोची-समझी राय है”। सूत्रों का कहना है कि मंत्रालय ने डबास पर लड़ाई छोड़ने का दबाव बनाया था। “भारतीयसहकारिता” स्रोत भी इस मुद्दे पर एनसीयूआई और मंत्रालय के बीच कुछ विवादों की ओर इशारा करते हैं।

अनुमान है कि एनसीयूआई के वर्तमान नेतृत्व ने एनसीयूआई के अध्यक्ष के रूप में मंत्रालय द्वारा तय किए गए एक उम्मीदवार के विचार पर सहमति व्यक्त की है इसलिये डबास ने अपनी याचिका वापसी ली है।

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