अपनी पार्टी में असंतोष की स्थिति से उबरने के लिए मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार सहकारी बैंकों में एमपी/एमएलए की नियुक्ति करने पर विचार कर रही है। इससे पहले शिवराज सरकार ने ही सहकारी बैंकों के शीर्ष पदों पर एमपी/एमएलए की नियुक्ति पर रोक लगाई थी।
ऐसी खबर है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार सहकारी अधिनियम में संशोधन करके असंतुष्ट विधायकों को जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों में प्रशासक बनाने की योजना बना रही है।
पाठकों को याद होगा कि शिवराज के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने पहले सांसदों और विधायकों को सहकारी समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनने पर रोक लगाई थी और इस संदर्भ में एक विधेयक राज्य विधानसभा द्वारा पारित किया गया था ।
2015 में संशोधित सहकारी अधिनियम के अनुसार, “संसद सदस्यों और विधायकों के अलावा, जो जिला पंचायतों, ग्राम पंचायतों, स्थानीय नगर निकायों, विपणन बोर्ड या विपणन समितियों के लिए चुने गए हैं, उन्हें भी सहकारी समितियों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या चेयरमैन बनने की अनुमति नहीं होगी”।
अटकलें है कि राज्य सहकारी अधिनियम में संशोधन के लिए विधेयक को आगामी विधानसभा सत्र में पेश किया जा सकता है और भाजपा एक बार फिर अपने विधायकों और सांसदों को इन डीसीसीबी में महत्वपूर्ण भूमिकाओं के साथ समायोजित करेगी।
कई विधायक मंत्री बनना चाहते हैं, खासकर वे जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। इस स्थिति में शिवराज के लिए सभी को खुश करना मुश्किल है। इसलिए वे असंतुष्ट विधायकों को सहकारी समितियों में समायोजित करने के लिए सहकारी अधिनियम में संशोधन करने की योजना बना रहे हैं।
मध्य प्रदेश के एक सहकारी नेता ने कहा, “डीसीसीबी में अध्यक्ष बनने से पहले विधायकों और सांसदों को बैंक का प्राथमिक सदस्य बनना होता है। यह कहा जाता है कि लगभग 50 प्रतिशत अध्यक्ष अभी भी विभिन्न जिला सहकारी बैंकों के सदस्य हैं। जिनकी सदस्यता समाप्त हो गई है, उन्हें अपनी सदस्यता को नवीनीकृत करना होगा।
मध्य प्रदेश में 38 डीसीसीबी हैं और अधिनियम में संशोधन के बाद शिवराज सरकार इन बैंकों में प्रशासकों के रूप में सांसदों और विधायकों का समायोजन करेगी।
इससे पहले, जैसे ही बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सत्ता संभाली, उसने राज्य के जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों में कांग्रेस सरकार द्वारा नियुक्त सभी प्रशासकों को निलंबित कर दिया था।