एक ओर पुणे के अर्बन कॉपरेटिव बैंकों की शीर्ष संस्था ने बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश का कड़ा विरोध किया है तो दूसरी ओर तमिलनाडु के दो शहरी सहकारी बैंकों ने मद्रास उच्च न्यायालय में संशोधन की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुये याचिका दायर की है।
इस बीच भारतीय सहकारिता से बातचीत में कई वरिष्ठ सहकारी नेताओं ने महसूस किया कि बीआर अधिनियम में संशोधन के विरोध की उत्पत्ति राज्य की सहकारी राजनीति से हुई है। चूंकि संशोधन उन सभी संस्थाओं पर लागू होगा, जिन्हें आरबीआई ने लाइसेंस दिया है, अतः को-ऑप बैंकों के नेता इसके विरुद्ध हैं।
शुरुआत से ही सहकारी बैंकों (शहरी सहकारी बैंकों से अलग) को राज्यों की सत्तारूढ़ पार्टी अपनी जागीर समझती रही हैं और मनमाने ढंग से इसको नियंत्रित करते हैं लेकिन वर्तमान अध्यादेश यह सब बदल देगा, सहकारी नेताओं ने कहा।
सहकारी क्षेत्र के विकास पर नजर रखने वालों का कहना है कि अध्यादेश का कड़ा विरोध शरद पवार और ममता बनर्जी कर रही हैं। चूँकि पवार खुद चीनी सहकारी राजनीति से निकले हुए आदमी हैं, जिसे डीसीसीबी द्वारा बड़े पैमाने पर वित्त पोषित किया गया है और संशोधन का उनका विरोध स्वाभाविक है, विशेषज्ञों ने कहा।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री अधिक स्पष्ट रहीं हैं और पूरे अध्यादेश को निरस्त करने की मांग के बजाय, वह केवल राज्य को-ऑप बैंकों और डीसीसीबी को अध्यादेश के दायरे से बाहर रखना चाहती हैं।
नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित और संरक्षित, को-ऑप बैंक सत्तारूढ़ व्यवस्था के लिए अनुकूल रहे हैं, जो किसानों को उनके माध्यम से ऋण की पेशकश करके या ऋण मांफी करा कर, जब जैसी जरूरत हो, राज्य की राजनीति को प्रभावित करते हैं।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यूसीबी सेक्टर में भी कुछ निहित स्वार्थों की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन ज्यादातर लोग इसके पक्ष में हैं। उन्होंने सहकारिता के मुख्य सिद्धांत “प्रति सदस्य एक वोट” के मुद्दे को उद्धृत किया और कहा कि संशोधन इस सिद्धांत को कमजोर करने की बात नहीं करता है और फिर भी लोगों का एक वर्ग इसे दूसरे तरह से साबित करने की कोशिश कर रहा है।
जब “भारतीयसहकारिता” ने नेफकॉब अध्यक्ष से उनकी टिप्पणी के लिए संपर्क किया, तो ज्योतिंद्र मेहता ने कहा कि वह अभी तक असहमति का आधार नहीं जानते हैं। “मेरे पास प्रतिक्रिया करने के लिए लिखित सामग्री नहीं है”, उन्होंने जोर देते हुए कहा कि “एक व्यक्ति एक मत वाले” सिद्धांत का उल्लंघन नहीं होगा।
तमिलनाडु के दो यूसीबी, “बिग कांचीपुरम कोऑपरेटिव टाउन बैंक लिमिटेड” और “वेलूर कोऑपरेटिव अर्बन बैंक” का उल्लेख करते हुए मेहता ने कहा कि वह उन्हें नहीं जानते हैं और उन्होंने नेफकॉब को कोई लिखित सामग्री नहीं भेजी है।
उन्होंने कहा कि वे भले ही नेफकॉब की जनरल बॉडी का हिस्सा हों, लेकिन कई दशकों से तमिलनाडु में सहकारी समितियां बिना किसी चुनाव के सरकारी कर्मचारियों द्वारा चलाई जा रही हैं। उनकी प्राथमिकताएं जमीनी स्तर के सहकारी नेताओं से अलग हैं।
इस बीच, मद्रास उच्च न्यायालय ने केंद्र और आरबीआई से कहा है कि वे 2020 के बैंकिंग नियमन (संशोधन) अध्यादेश की कुछ धाराओं की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली तमिलनाडु के दो सहकारी बैंकों की याचिकाओं पर अपना प्रति शपथ पत्र दाखिल करें।
याचिका में सहकारी बैंकों ने तर्क दिया कि विषय विशेष राज्य विधानमंडल के अधिकार क्षेत्र में आता है। मामले में अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी।