नेशनल लेबर को-ऑपरेटिव फेडरेशन ऑफ इंडिया (एनएलसीएफ़) की एमडी प्रतिभा अहुजा और संस्था के एक निदेशक अशोक डबास के बीच चल रही तनातनी के कारण एनएलसीएफ़ विवादों के घेरे में है।
बता दें कि दोनों पक्षों के बीच लड़ाई अब और गहरी होती जा रही है। एक ओर संस्था के निदेशक डबास ने अहुजा पर धन के कथित दुरुपयोग का आरोप लगाया है वहीं दूसरी ओर संस्था की एमडी ने डबास पर कर्मचारियों के सामने उन्हें धमकाने का आरोप लगाया है। इस बीच यह मामला केंद्रीय रजिस्ट्रार के कार्यालय में पहुँच गया है।
बताया जा रहा है कि छह महीने के बाद जूम पर 29 जून 2020 को हुई बोर्ड बैठक में पूरा विवाद शुरू हुआ। इस बैठक का मुख्य एजेंडा एक ऑफिसिएटिंग अध्यक्ष का चुनाव करना था क्योंकि फरवरी में आर्बिट्रेटर दीपा शर्मा ने एनएलसीएफ़ की चेयरपर्सन मिली मिघितो, वाइस चेयरमैन नरेंद्र सिंह राणा और पांच अन्य निर्देशकों को अयोग्य ठहराया था।
‘भारतीयसहकारिता’ से बात करते हुए डबास ने दावा किया कि, बोर्ड की बैठक में अधिकांश निदेशक मेरे पक्ष में थे, जिससे स्पष्ट है कि चुनाव होने तक मैं ऑफिसिएटिंग अध्यक्ष हूं। मुझे वोटिंग के दौरान 6 वोट मिले जबकि मेरे प्रतिद्वंद्वी अमित बजाज को केवल पांच वोट मिले थे। लेकिन एमडी सुनियोजित तरीके से बार-बार बैठक में अड़चन पैदा कर रही थीं।”
यहां तक कि एजेंडा नंबर 2 में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रिक्त पदों के चुनाव जल्द कराने के लिए बोर्ड उचित निर्णय ले सकता है। एजेंडा नंबर –2 के अनुसार, “इस उद्देश्य के लिए, चुनाव आरओ द्वारा सम्पन्न कराया जाना है और बोर्ड द्वारा अधिकृत व्यक्ति केंद्रीय रजिस्ट्रार के कार्यालय को संपर्क कर सकता है/लिख सकता है जो उपयुक्त तिथि पर पूर्वोक्त चुनावों के संचालन के लिए आरओ नियुक्त करेगा। इस बीच, जब तक उपरोक्त चुनावों का आयोजन नहीं किया जाता है, तब तक बोर्ड एक व्यक्ति को कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए नियुक्त कर सकता है ताकि एनएलएफ़सी के कार्य में बाधा न आए”।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आहूजा ने कहा, “अशोक डबास ने बोर्ड की बैठक को हाईजैक कर लिया था और अपना एजेंडा चलाने की कोशिश कर रहे थे। डबास और उनकी टीम ने इस विषय पर कोई चर्चा करने के बजाए मतदान शुरू कर दिया, जिसके कारण बोर्ड की बैठक बाधित हुई और एजेंडा संख्या 2 पर कानूनी राय लेने एवं उस पर केंद्रीय रजिस्ट्रार का सुझाव के लिए बैठक को सदस्यों के सामूहिक निर्णय से स्थागित किया गया”, उन्होंने कहा।
“बोर्ड की बैठक के बाद, डबास एनएलसीएफ कार्यालय में आए और मुझ पर बोर्ड की कार्यवृत पर कार्रवाई करने का दबाव डाला। उन्होंने मुझे एनएलसीएफ़ के अन्य स्टाफ सदस्यों के सामने धमकी दी। उन्होंने बैठक के मिनट्स का मसौदा तैयार किया था और मुझे पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया”, आहूजा ने कहा।
इसके विपरीत, डबास ने एमडी पर धन के दुरुपयोग में लिप्त होने का आरोप लगाया। डबास ने कहा, “2014 में केरल और महाराष्ट्र की कई प्राथमिक समितियों ने एनएलसीएफ़ की सदस्यता पाने के लिए आवेदन किया था और मुझे मिली जानकारी के मुताबिक संस्था में बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ है। यहां तक कि केरल के सदस्यता आवेदन को भी बोर्ड के सामने नहीं रखा गया। इस संबंध में सूचना देने के लिए मैंने एमडी को कई पत्र लिखे हैं, लेकिन अभी भी कोई जवाब नहीं मिला है”, उन्होंने कहा।
इसके अलावा, सिक्किम में एक स्थानीय सहकारी समिति द्वारा 2018 में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था, लेकिन कई पत्र लिखने के बाद भी बकाया राशि का अभी तक भुगतान नहीं हुआ है। एमडी पर धन के दुरुपयोग के कई अन्य आरोप हैं”, डबास ने रेखांकित किया।
इन आरोपों से इनकार करते हुए, आहूजा ने कहा कि 2014 में वह एमडी नहीं थीं और अगर उन्हें कोई विसंगति मिली तो वह पिछले कई सालों से चुप क्यों थे, उन्हें अचानक क्यों याद आया?, आहूजा ने पूछा।
“डबास ऐसे आरोप लगा रहे हैं जिनका कोई आधार नहीं है। सिक्किम सम्मेलन का बकाया दे दिया गया है”, आहूजा ने दावा किया।
धमकी के मद्देनजर, आहूजा ने सभी निदेशकों को अशोक डबास के खिलाफ शिकायत लिखी है और सूत्रों ने कहा कि वह इसे महिला आयोग और स्थानीय पुलिस को भी भेंजेगी। डबास ने भी आहूजा को कानूनी नोटिस भेजा है।
कई सहकारी नेता हैं जिनका विचार है कि यह मुद्दा पूर्व अध्यक्ष संजीव कुशालकर के साथ डबास की लड़ाई के समय से चल रहा है।
इससे पहले, एमडी ने अगली बोर्ड मीटिंग 10 अगस्त 2020 को बुलाई थी, लेकिन बोर्ड मीटिंग बुलाने में एक्ट के उल्लंघन के मद्देनज़र, डबास ने सेंट्रल रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर बोर्ड मीटिंग नहीं करने के निर्देश देने का अनुरोध किया और बैठक रद्द कराने में सफल भी हुए।