मध्य प्रदेश में पिछले हफ्ते हुई शिवराज सरकार की कैबिनेट बैठक में राज्य के सहकारी अधिनियम में संशोधन के लिए अध्यादेश लाने को मंजूरी मिल गई।
अधिनियम में संशोधन करने और इस संबंध में अध्यादेश लाने के पीछे का उद्देश्य असंतुष्ट विधायकों को जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों में प्रशासक बनाना है। संक्षेप में, भाजपा सरकार उन असंतुष्ट विधायकों एवं सांसदों को सहकारी बैंकों की कमान सौंपना चाहती है जिन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। कोरोना के मद्देनजर, सरकार इस संबध में अध्यादेश लाएगी।
सूत्रों के अनुसार, दिग्गज भाजपा नेता रमाकांत भार्गव को भी एक सहकारी बैंक का प्रशासक बनाया जा सकता है।
इससे पहले राज्य सरकार अधिनियम में संशोधन करने की योजना बना रही थी, जिसके लिए एक विधेयक को विधानसभा में पेश किया जाना था, लेकिन कोरोना के मद्देनजर विधानसभा के सत्र को स्थगित करने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया। अब अध्यादेश को राज्यपाल को भेजा जाएगा और स्वीकृति मिलते ही उसे लागू कर दिया जाएगा।
पाठकों को याद होगा कि शिवराज के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने पहले सांसदों और विधायकों को सहकारी समितियों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनने पर रोक लगाई थी और इस संदर्भ में एक विधेयक राज्य विधानसभा द्वारा पारित किया गया था।
2015 में संशोधित सहकारी अधिनियम के अनुसार, “संसद सदस्यों और विधायकों के अलावा, जो जिला पंचायतों, ग्राम पंचायतों, स्थानीय नगर निकायों, विपणन बोर्ड या विपणन समितियों के लिए चुने गए हैं, उन्हें भी सहकारी समितियों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या चेयरमैन बनने की अनुमति नहीं होगी”।
कई विधायक मंत्री बनना चाहते हैं, खासकर वे जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। इस स्थिति में शिवराज के लिए सभी को खुश करना मुश्किल है। इसलिए वे असंतुष्ट विधायकों को सहकारी समितियों में समायोजित करने के लिए सहकारी अधिनियम में संशोधन करने की योजना बना रहे हैं।
मध्य प्रदेश में 38 डीसीसीबी हैं और अधिनियम में संशोधन के बाद शिवराज सरकार इन बैंकों में प्रशासकों के रूप में सांसदों और विधायकों का समायोजन करेगी।
इस साल, जैसे ही बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सत्ता संभाली, उसने राज्य के जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों में कांग्रेस सरकार द्वारा नियुक्त सभी प्रशासकों को निलंबित कर दिया था।