सहकार भारती के अथक प्रयास के अच्छे परिणाम एक बार फिर सामने आए हैं। “हिमाचल प्रदेश सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक, 2020” को राज्य विधान सभा में पिछले सप्ताह कई संशोधनों के साथ पारित किया गया।
यह प्रगति सामान्य नहीं है, क्योंकि यह इतिहास रचने जा रही है। आने वाले समय में लोगों को बताया जाएगा कि सहकारी समिति बनाने का अधिकार देने वाले 97वें संविधान संशोधन को लागू करने वाला हिमाचल प्रदेश पहला राज्य बना था।
हिमाचल प्रदेश में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार ने एक अर्द्ध शताब्दी पुराने कानून “हिमाचल प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम, 1968” में संशोधन किया है। हालांकि, इस विधेयक को बजट सत्र में पारित किया जाना था लेकिन कोविड की वजह से देरी हुई।
इस बीच, सहकार भारती के राज्य प्रमुख विवेक ज्योति ने कहा, “यह अधिनियम सहकारी आंदोलन में पारदर्शिता और लोकतंत्रीकरण का प्रभात लाया है और सहकारी समितियों पर अनावश्यक और अत्यधिक नियंत्रण का युग समाप्त हो गया है”।
ज्योति ने राज्य के सीएम जय राम ठाकुर और सहकारिता मंत्री सुरेश भारद्वाज का धन्यवाद किया, जिन्होंने साहस दिखाया और सहकार भारती के अनुरोध पर कानून बनाया। सहकार भारती पिछले डेढ़ साल से स्वायत्त सहकारिता अधिनियम की मांग कर रही थी।
संशोधनों के अनुसार, आवेदन प्राप्त होने और यह सुनिश्चित करने के बाद कि आवेदन अधिनियम के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों के विपरीत नहीं है, सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को नब्बे दिनों की अवधि के भीतर अनिवार्य रूप से सहकारी समिति को पंजीकृत करना होगा।
इससे पहले, पंजीकरण करना या इनकार करना रजिस्ट्रार का विवेकाधिकार था। इसके अलावा, रजिस्ट्रार को पंजीकरण से इंकार करने का अधिकार दिया गया था यदि लगता था कि प्रस्तावित समितियों के पास सफलता की संभावना नहीं थी। हालांकि, यह संशोधन (धारा 8 का) राज्य में सहकारी आंदोलन को मजबूत करने वाली नयी समितियों के पंजीकरण को प्रोत्साहित करेगा।
रजिस्ट्रार अब सहकारी समितियों द्वारा उनके उप-कानूनों में किए गए संशोधनों को दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकते। यह संशोधन पहले से मौजूद समितियों के लिए भी फायदेमंद होगा जो अपने उप-कानूनों में संशोधन करने के लिए तैयार हैं। अब सभी समितियां अपने उप-कानूनों को लोकतांत्रिक तरीके से संशोधित कर सकती हैं और रजिस्ट्रार ऐसे संशोधनों को (धारा 11 के संशोधन के तहत) दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकते।
इस संशोधन से पहले, धारा 11-ए के तहत, रजिस्ट्रार को किसी भी सहकारी समिति को उसके उप-कानूनों में संशोधन करने के लिए निर्देश देने का अधिकार था। यह समितियों के लोकतांत्रित कामकाज में अनावश्यक हस्तक्षेप का कारण था और वास्तव में यह सहकारी समितियों को नियंत्रित करने का एक साधन था। हालाँकि, अब यह धारा पूरी तरह से हटा दी गयी है।
धारा 14-ए के अनुसार, रजिस्ट्रार को सहकारी समितियों के समामेलन, रूपांतरण और पुन: संगठन के लिए अधिकार दिया गया था। यह प्रावधान बुनियादी सहकारी सिद्धांतों के विरुद्ध था। वास्तव में, यह रजिस्ट्रार के हाथों में यह एक उपकरण था जो समितियों को नियंत्रित करता था। एचपी सरकार ने इस खंड को भी हटा दिया है।
एक अन्य महत्वपूर्ण संशोधन यह है कि समितियों को केवल अपने सदस्यों से जमा प्राप्त करने की अनुमति दी गयी है। कुछ मामलों में, गैर-सदस्यों से जमा प्राप्त करने के परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार हुआ और यह सहकारी सिद्धांतों के भी विरुद्ध था।
संशोधनों से सहकारी समितियों के संबंध में निरीक्षकों के शासन पर से भी पर्दा उठ गया है। अब सहकारी समितियाँ सरकार द्वारा अधिसूचित पैनल से लेखा परीक्षकों का चयन करने के लिए स्वतंत्र होंगी। लेखा परीक्षकों का चयन करने का निर्णय केवल समितियों की आम बैठक में लिया जा सकता है।
नये कानून के तहत, यदि सहकारी बैंक की एक समिति आरबीआई के कहने पर अधिक्रमित की जाती है, तो ऐसी समिति का कोई भी सदस्य दस साल की अवधि के लिए ऐसे बैंक या किसी अन्य बैंक की समिति के लिए पुन: निर्वाचित, पुनः नियुक्त या पुन: मनोनीत किए जाने के लिए पात्र नहीं होगा।
इस ऐतिहासिक प्रगति के बाद “भारतीयसहकारिता” से बात करते हुए, मराठे ने कहा, “97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के कार्यान्वयन की दिशा में यह एक शुरुआत है; हिमाचल एक छोटा राज्य है लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि बाद में जल्द ही कई अन्य राज्यों में भी इस अधिनियम को दोहराया जाएगा”। मराठे ने इससे पहले कानून में संशोधन की आवश्यकता पर राज्य के नेताओं को समझाने के लिए राज्य का दौरा किया था।