जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने दूध और अनाज के बीच तालमेल बिठाते हुए, किसानों के लिए खुले बाजार की व्यवस्था लागू करने के लिए मोदी सरकार की प्रशंसा की है, जिसका उल्लेख हाल ही में पारित कृषि बिल में किया गया है। सोढ़ी ने ट्वीट कर बताया कि कहीं भी दूध बेचने की आजादी से डेयरी किसान समृद्ध बने हैं।
रविवार को प्रसारित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” के एक वाक्य को दोहराते हुए सोढ़ी ने कहा, “कम लोगों को ही पता है कि भारत में कुल उत्पादित दूध की कीमत 8 लाख करोड़ रुपये है, जो गेहूं, धान और गन्ने के संयुक्त मूल्य से अधिक है। अब किसान अपने उत्पाद को कहीं भी बेचने और खरीदार इसे खरीदने के लिए स्वतंत्र हैं”।
‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि नए कृषि कानून से किसान अपनी उपज कहीं भी बेच सकेगा, जैसा कि सब्जी और फल उत्पादक अपने उत्पाद को कहीं भी बेचना पसंद करते हैं। यह स्वतंत्रता उनकी ताकत है और यही सुविधा अनाज उत्पादक किसानों के लिए भी उपलब्ध होगी, पीएम ने रेखांकित किया।
उत्पादकों के लिए खुले बाजार की व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए, अमूल के एमडी ने याद दिलाया कि प्रतिबंधित बाजार में उपज बेचने की मजबूरी के कारण जीडीपी में कृषि के योगदान में लगातार गिरावट आई है, जबकि डेयरी के योगदान में वृद्धि हुई है।
इस मुद्दे पर सोढ़ी ने ट्वीट में लिखा है, “राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान कम हो रहा है, जबकि दूध का योगदान हर साल बढ़ रहा है और दुग्ध किसानों की भी आय में वृद्धि हो रही है। किसानों को उनकी उपज कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए आभार।”
हालांकि सोढ़ी के कई फॉलोवर्स ने उनके बयान की जमकर तारीफ की, वहीं कई उनकी बात से असहमत थे। उनके अनुयायियों में से एक ने लिखा, “दूध के लिए कोई एमएसपी नहीं। सहकारी संस्थाएं काफी मदद करती हैं। कोई बिचौलिया नहीं। फसलों के लिए भी यही आगे का रास्ता है। #फार्मबिल 2020”।
एक अन्य ने लिखा, “और तो और, अब मंडियों में भीड़ नहीं होगी और कोई जोर-जबरदस्ती नहीं करेगा और किसानों के पास या तो अनुबंधित खरीदार होंगे या बेचने के लिए कई विकल्प होंगे। मंडियों में इस एक महीने की भीड़ किसानों के लिए अप्रिय स्थिति पैदा कर देती है।”
उनके अनुयायियों में से एक ने उनको बधाई देते हुए कहा, “पिछले 6 महीनों में कई नवाचारों के लिए अमूल को बधाई; हमारे मवेशियों, उनके पालनकर्ता, कोऑपरेटिव्स और विजन को शक्ति।”
दिलचस्प बात यह है कि कुछ बड़े अर्थशास्त्रियों ने खुले तौर पर फार्म बिलों का समर्थन किया है और उन्हें ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए गेम-चेंजर बताया है, जिनमें पनगढ़िया, ऐंकलेश्वर अय्यर, मोहनदास पाई का नाम शामिल है।