जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आरएस सोढ़ी ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसेप) समझौते से भारत के बाहर रहने के निर्णय के एक वर्ष बीतने पर बताया कि कैसे इस साहसिक कदम से देश के100 मिलियन डेयरी किसानों को फायदा हुआ है।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसेप) एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) है, जिसमें आसियान के दस सदस्य देश तथा पाँच अन्य देश (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) शामिल हैं। एलएसी पर बढ़ते तनाव को देखते हुए, भारत के इस निर्णय को विशेषज्ञों ने सही ठहराया।
सोढ़ी ने फोन पर भारतीय सहकारिता के साथ बातचीत में कहा कि न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के लिए डेयरी एक व्यवसाय है लेकिन भारत में डेयरी फार्मिंग हमारे लिए आजीविका का साधन है।
पाठकों को याद होगा कि सोढ़ी ने अतीत में आरसीईपी समझौते में भारत के शामिल होने का विरोध किया था। सोढ़ी ने कहा कि कुछ देश अपने अधिशेष को खपाने के लिए भारतीय बाजार में प्रवेश करने के लिए उत्सुक थे। उन्हें एहसास नहीं है कि यह लाखों भारतीय किसानों के लिए आजीविका का सवाल था।
इस तथ्य से अवगत कि इस मुद्दे ने बुद्धिजीवियों और अर्थशास्त्रियों का ध्रुवीकरण किया है, सोढ़ी ने कहा कि यह उदारवादी बाजार बनाम लाखों भारतीय डेयरी किसानों के कुछ सौ समर्थकों का मामला है। बिजनेस अखबार या बिजनेस टीवी चैनल उन करोड़ों डेयरी किसानों के रुख को नहीं दिखाते हैं जो सरकार के इस कदम से बेहद खुश हैं। सोढ़ी ने कहा, ”वोकल नहीं होने के कारण, मीडिया वास्तविक प्रतिक्रियाओं का पता लगाने में विफल रहता है।”
स्मरणीय है कि जब सदस्यों ने बात नहीं सुनी तो भारत सौदे से बाहर हो गया।
भारत घरेलू अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए वस्तुओं और सेवाओं की संरक्षित सूची के साथ बाजार पहुंच का मुद्दा उठाता रहा है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत पिछले वर्ष क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से इसलिए अलग हो गया था क्योंकि उसमें शामिल होने से देश की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रतिकूल प्रभाव होता। सेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी स्टडीज की ओर से आयोजित ऑनलाइन चर्चा में जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में सुधार/बदलाव की पुरजोर सिफारिश करते हुए कहा कि एक या दो देशों को अपने फायदे के लिए प्रक्रिया को रोकने की इजाजत नहीं होनी चाहिए।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार के प्रस्तावित समझौते पर जयशंकर ने कहा कि भारत निष्पक्ष और संतुलित समझौते की आशा रखता है। आरसीईपी के संबंध में सवाल करने पर विदेश मंत्री ने कहा कि भारत समूह से इसलिए बाहर हो गया क्योंकि उसके द्वारा रखी गई मुख्य चिंताओं का समाधान नहीं किया गया।
भारत दुनिया का 20% दूध उत्पादन के साथ दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। विकास की वर्तमान दर पर, यह 2033 तक दुनिया के दूध के 31% का उत्पादन करने वाला देश बन सकता है और निश्चित रूप से दुनिया के लिए एक डेयरी प्रमुख के रूप में उभर सकता है।