एनसीयूआई की जीसी में पिछले चुनाव में बिहार से कोई भी उम्मीदवार नहीं था लेकिन इस बार जीसी में राज्य से दो सदस्य निर्वाचित हुए हैं। इनमें बिस्कोमान के चेयरमैन सुनील कुमार सिंह और स्वर्गीय अजीत सिंह के बेटे विशाल सिंह शामिल हैं।
हालांकि, सुनील पहले ही चुन लिये गए थे, विशाल का नाम जीसी की पहली बैठक में आया जब उन्हें और अरुण तोमर को को-ऑप्ट करने की घोषणा की गई।
विशाल सिंह को जीसी में को-ऑप्ट किया जाना राज्य की सहकारी राजनीति में एक नए युग को आरंभ करेगा, उनके मित्रों ने दावा किया।
दिलचस्प बात यह है कि सुनील और विशाल दोनों चंद्र पाल और बिजेन्द्र सिंह के करीबी हैं। इन दोनों के बीच आपसी मतभेद शीर्ष नेताओं के लिए हमेशा से सिरदर्द का कारण रहा है। दोनों के बीच संतुलन बनाने का प्रयास चलता ही रहता है।
जब चंद्र पाल ने विशाल से पश्चिम बंगाल के उम्मीदवार के पक्ष में चुनावी मैदान छोड़ने को कहा तो किसी को यह नहीं पता था कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है। ये अनिश्चितता तब समाप्त हो गई जब बिजेंद्र सिंह ने जीसी की पहली बैठक में ही अरुण तोमर के साथ-साथ विशाल का नाम दो को-ऑप्टेड निदेशकों के रूप में रखा।
पाठकों को बता दें कि चुनाव के दौरान एक ऐसा समय आया था जब विशाल लड़कर भी जीत सकते थे। भारतीय सहकारिता से बात करते हुए विशाल ने कहा कि वे वही करेंगे जो चंद्रपाल और बिजेन्द्र कहेंगे। मेरे गार्जियन मेरी चिंता करते हैं, विशाल ने आत्मविश्वास के साथ कहा।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि सुनील और विशाल राज्य स्तर पर प्रतिद्वंद्वी हैं। जहां सुनील मार्केटिंग को-ऑप फेडरेशन बिस्कोमॉन को नियंत्रित करते हैं, वहीं विशाल स्टेट को-ऑप यूनियन को कंट्रोल करते हैं। बिहार स्टेट को-ऑप यूनियन के अध्यक्ष विनय शाही भी विशाल के खेमे के माने जाते हैं।
विशाल के समर्थकों का कहना है कि उनके जीसी में स्थान प्राप्त करने के साथ, राज्य की को-ऑप राजनीति में उनका दबदबा बढ़ने वाला है। लेकिन यह बात कहाँ तक संभव होगी, वो तो वक्त ही बताएगा।
“भारतीयसहकारिता” से बातचीत करते हुए विशाल सिंह ने कहा कि राज्य स्तर पर बहुत सारे काम किए जाने हैं। उन्होंने कहा, “हम को-ऑप प्रशिक्षण को तेज करने और राज्य सरकार के साथ मिलकर कम करने के लिए इच्छुक हैं।”