नए अध्यक्ष के रूप में दिलीप संघानी को चुने जाने के बाद, भारतीय सहकारी आंदोलन के “पोस्टर बॉय” चंद्रपाल सिंह यादव को गर्मजोशी से विदाई दी गई। यादव ने एनसीयूआई के अध्यक्ष के रूप में एक दशक तक देश के सहकारी आंदोलन का नेतृत्व किया है और देश में सहकारी आंदोलन को नई ऊँचाइयों तक ले जाने में अहम भूमिका निभाई।
सहकारिता में शांति के दूत माने जाने वाले यादव नरम और धैर्यवान व्यक्ति हैं। सहकारी नेताओं के आपसी अहम के टकराव को कई बार उन्होंने हंसते-हंसते खत्म किया है। फिर इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि सहकारी गलियारों में वे काफी लोक प्रिय हैं और उनकी बातों को नेतागण मानते रहे हैं।
नवनिर्वाचित जीसी की पहली बोर्ड की बैठक में चुने गए निदेशकों ने यादव के “सबका साथ” नेतृत्व शैली को याद किया। इस अवसर पर उनके सबसे करीबी सहयोगी बिजेन्द्र सिंह ने उन्हें एनसीयूआई का मार्गदर्शन वैसी ही करने को कहा जैसा कि उन्होंने अतीत में किया था। इस मौके पर नवनिर्वाचित अध्यक्ष संघानी ने सभी को बताया कि, आप सब बेफिक्र रहे क्योंकि चंद्रपालजी ने एनसीयूआई का आगे भी मार्गदर्शन करने का वादा मुझसे किया है।
इस मौके पर बिजेन्द्र सिंह ने कहा, “एक अंतरराष्ट्रीय सहकारी नेता होने के नाते और आईसीए-एशिया पैसिफिक के उपाध्यक्ष के रूप में राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर उनकी भूमिका अहम है। पाठकों को याद होगा कि सोमवार के चुनाव में बिजेन्द्र सिंह को एनसीयूआई के उपाध्यक्ष के रूप में एक बार फिर चुना गया है।
हर किसी की बात सुनने का चंद्रपाल का गुण उनके आलोचकों द्वारा भी सराहा जाता रहा है। “कोई भी व्यक्ति बेझिझक होकर उनसे मिल सकता है और उन्हें कुछ भी बता सकता है। वह अभिगम्य और खुले दिल के आदमी हैं”, लोगों ने कहा ।
स्वभाव में नरम और सौम्य होने के बावजूद, चंद्रपाल को कोई मूर्ख नहीं बन सकता, उनके एक मित्र ने कहा। शीर्ष पद पर रहने के दौरान कई ऐसे मौके आए जब उनके कुशल नेतृत्व का एहसास लोगों को हुआ। पहले, वे मुद्दे को समझने की कोशिश करते हैं और फिर अपनी ऐसी राय बनाते हैं जिसे कोई बदल नहीं सकता है, उनके एक मित्र ने बताया।
चन्द्र पाल एक ऐसे नेता भी हैं जो पार्टी लाइन से हटकर सहकारी समितियों का उत्थान चाहते हैं। “सहकारिता के लिए वह किसी से भी भिड़ सकते हैं, चाहे वह उनकी समाजवादी पार्टी का ही नेता कोई न हो। उनका निकटतम सहकारी दोस्त बिजेन्द्र सिंह हैं जो कांग्रेस के नेता हैं। यही नहीं, एनसीयूआई अध्यक्ष के रूप में उनकी जगह लेने के लिए संघानी उनकी पहली पसंद थे। बता दें कि संघानी एक जाने-माने भाजपा नेता हैं लेकिन फिर भी चंद्र पाल ने उन्हें शीर्ष पद के लिए चुना।
एनसीयूआई में चंद्रपाल के अध्यक्ष के रूप में 10 साल के कार्यकाल में कोई बड़ा वाद विवाद नहीं हुआ। लोगों को धैर्यपूर्वक सुनने और नियम के अनुसार चलने की उनकी आदत उन्हें कई चीजों से बचाती रही।
जाते-जाते उनका एकमात्र अफसोस यह रहा कि वह एनसीयूआई में एनसीसीटी के वापस लाने के मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे। जानकारी हो की इस मामले में वह अपने ही कुछ लोगों की राजनीति का शिकार हो गए। लोग गड्ढा खोदते रहे लेकिन चंद्रपाल इस षड्यंत्र से बेखबर उन लोगों पर ही भोरसा करते रहे।
लेकिन उनकी सबसे बड़ी संतुष्टि एनसीयूआई अध्यक्ष के रूप में संघानी का चुनाव रहा। भारतीय सहकारिता से बात करते हुए उन्होंने कहा “मैं एनसीयूआई की डोर एक ऐसे व्यक्ति के हाथ में सौंप रहा हूं, जो इस आंदोलन को ऊंचाइयों तक ले जाने की क्षमता रखता है। है।” हालांकि उन्होंने अपने शब्दों में ऐसा नहीं कहा, लेकिन वह चाहते है कि संघानी अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करके एनसीयूआई को एनसीसीटी वापस दिलाएं।
हालांकि वह अब एनसीयूआई के अध्यक्ष नहीं रहे, लेकिन चंद्र पाल देश के सहकारी परिदृश्य पर हावी रहेंगे। शीर्ष निकाय के बोर्ड में होने के अलावा, वह कृभको के अध्यक्ष भी हैं। वह आईसीए-एपी के उपाध्यक्ष भी हैं। वह नेफेड सहित राष्ट्रीय स्तर की कई सहकारी संस्थाओं में भी हैं।
भविष्य के लिए भारतीय सहकारिता उन्हें शुभकामनाएँ देती है!