नेशनल लेबर को-ऑपरेटिव फेडरेशन ऑफ इंडिया (एनएलसीएफ) की 44वीं वार्षिक आम सभा पिछले सप्ताह काफी हंगामे के बीच संपन्न हुई। संस्था के सदस्यों ने एनएलसीएफ के एक निदेशक वीवीपी नायर के खिलाफ मोर्चा खोला, जिन्होंने बोर्ड पर धन के कथित दुरुपयोग में शामिल होने पर पुलिस शिकायत दर्ज करने की धमकी दी है।
एजीएम की शुरुआत से ही मामला गरमाया हुआ था। संस्था की एमडी द्वारा एजेंडे को पेश किये जाने के बाद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया था। अधिकांश सदस्य गुस्साए हुए थे और नायर और उनकी समिति को शीर्ष निकाय एनएलसीएफ की सदस्यता से निष्कासित करने की मांग कर रहे थे।
संस्था के एक निदेशक अशोक डबास ने बहस को समाप्त करते हुए कहा, “सदस्यों के भारी समर्थन के कारण, एनएलसीएफ की जेनरल बॉडी नायर की समिति को निष्कासित करने का प्रस्ताव पारित करती है।”
पूर्व विधायक व वरिष्ठ सहकारी नेताओं में से एक के लिंगैया ने नायर के सहकारी मामलों में पुलिस के पास जाने पर आपत्ति जताई। इससे पहले, गुरुप्रसाद खुशालपुर ने सभी सदस्यों से एक साथ काम करने की अपील की।
बात जब संस्था के पूर्व अध्यक्ष और निदेशक संजीव कुशालकर तक पहुंची तो उन्होंने नेफेड के अध्यक्ष बिजेन्द्र सिंह के गुट वाले नायर की काफी आलोचना की। एनएलसीएफ के अधिकांश सदस्यों की उनके प्रति निष्ठा है और उन्होंने पुलिस शिकायत के मुद्दे पर जमकर बहस की। इस मौके पर नायर को अपना भाषण पूरा करने की अनुमति देने वाले जगजीत सागवान की अपील पर किसी ने गौर नहीं किया।
अपनी शिकायत में नायर ने संजीव कुशालकर, अमित बजाज और एमडी श्रीमती प्रतिभा आहूजा पर सदस्य समितियों, महासंघों, सरकारी शेयरों, एनसीडीसी के शेयरों, ऋणों आदि के धन की हेराफेरी का आरोप लगाया था। शिकायत में लिखा गया कि करीब एक करोड़ रुपये का घपला किया गया है।
एमडी से लेकर अध्यक्ष अमित बजाज तक हर किसी ने फेडरेशन द्वारा किए गए खर्चों के बारे में बताया। एमडी ने कहा, “मैं 1981 में शामिल हुई थी और 38 वर्षों तक संगठन की सेवा की है। कोई भी संघ के खातों की जांच कर सकता है और अगर एक पैसा का भी हेर-फेर सामने आए तो मैं बिना देर किए पद छोड़ दूंगी।”
अपने भाषण में अमित बजाज ने कहा, “तत्कालीन अध्यक्ष संजीव कुशालकर ने वीवीपी नायर को अन्वेषक बनाया, जब नायर ने 2018 में धन के दुरुपयोग की शिकायत की थी। चूंकि संजीव आश्वस्त थे कि उन्होंने कभी कुछ गलत नहीं किया है और उन्हें जांच दल का प्रमुख बनाया गया था। क्या आपने कभी किसी शिकायतकर्ता को ही जज बनाये जाते हुए सुना है?” बजाज ने पूछा।
दो साल तक नायर ने जांच के बारे में कुछ नहीं किया और अब वह गांदी राजनीति कर रहे हैं, बजाज ने आश्वासन देते हुए कहा कि अगर कोई सबूत मिले तो वह कार्रवाई के लिए अभी भी तैयार हैं।
“1981 से एक करोड़ रुपये के धन के दुरुपयोग का आरोप किसी मजाक से कम नहीं है, खासकर तब जब सभी जानते हैं कि वेतन का भुगतान कैसे किया गया था”, बजाज ने कहा।
अशोक डबास ने स्पष्ट किया कि किसी भी निदेशक ने कभी भी एनएलसीएफ से टीए/डीए नहीं लिया और ऐसा करने वाला एकमात्र व्यक्ति वीवीपी नायर था। एक अनुबंध प्राप्त करने के नाम पर उन्होंने पैसे लिए थे और कभी उनके द्वारा एक पैसा नहीं लाया गया, उन्होंने कहा।
नेताओं ने यह भी महसूस किया कि एफआईआर के साथ लगातार हो रही छेड़छाड़ ने संगठन का नाम खराब किया है। इससे प्राथमिक समितियों को अनुबंध और व्यवसाय पाने में कठिनाइयों हो रही है, उन्होंने जोर दिया। डबास ने यहां तक कहा कि यदि ऐसी स्थिति बनी रही तो सरकारी अनुदान भी नहीं मिलने की आशंका है।
“भारतीयसहकारिता” ने जितने लोगों से बात की, उनमें से अधिकांश नेताओं ने महसूस किया कि अध्यक्ष बनने के लिए, नायर किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। बाद में, एजीएम सम्पन्न होने के बाद, नायर को इस बात को साबित करने के लिए प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर लेते हुए देखा गया कि उनका निष्कासन दो-तिहाई बहुमत से नहीं हुआ है। उन्होंने कहा कि वे सेंट्रल रजिस्ट्रार की अदालत में जाएंगे।