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मंत्रालय ने फिशकोफेड को इंश्योरेंस कार्य से किया वंचित

केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय की उदासीनता के कारण, देश के मछुआरों के लिए वित्त वर्ष 2020-21 में कोई बीमा योजना उपलब्ध नहीं थी। वर्तमान वित्त वर्ष में मंत्रालय के बाबुओं को लगता है कि देश के किसी भी मछुआरे के साथ किसी भी तरह की अनहोनी नहीं घटेगी।

और तो और मंत्रालय के बाबुओं को मछुआरों के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) के कार्यान्वयन के लिए एजेंसी निधारित करने में ही पूरा साल लग गया।

आखिर में मंत्रालय ने अगले वर्ष यानी 2021-22 में योजना को लागू करने के लिए राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनफडीबी) को नोडल एजेंसी नामित किया है, जिसमें एक साल लग गया।

मछुआरों की पैरवी करते हुए, सर्वोच्च सहकारी निकाय फिशकोफेड ने मंत्रालय के फैसले पर कई पत्र लिखे थे। संस्था का तर्क था कि पिछले पांच वर्षों में अकेले इसने 38 करोड़ रुपये का दावा निपटाया है और सरकार के पास संस्था से काम वापस लेने का कोई कारण नहीं है। इसके अलावा, फिशकोफेड पिछले 38 सालों से मछुआरों का इंश्योरेंस कर रही थी।

यह योजना राज्य और केंद्र दोनों द्वारा वित्त पोषित है। कुछ राज्यों ने इस काम के लिए फिशकॉफेड को अपना शेयर दिया है जबकि केंद्र सरकार संशय में रही और अब छह महीने से अधिक समय के बाद एनएफडीबी को नोडल एजेंसी बनाया।

दिलचस्प बात यह है कि कुछ राज्यों ने पहले ही फिशकॉफेड को अपना शेयर दे दिया था लेकिन मंत्रालय ने अभी तक अपना हिस्सा नहीं दिया है। 15 अक्टूबर 2020 को एक पत्र में फिशकोफेड ने मंत्रालय को लिखा, “निवेदन यह है कि अधिकांश राज्यों ने पहले ही योजना के तहत अपना शेयर दे दिया है। परंतु केंद्र सरकार से शेयर नहीं मिला है ताकि पॉलिसी उस की प्राप्ति की तारीख से शुरू की जा सके। केंद्र सरकार के हिस्से का प्रस्ताव पहले ही मंत्रालय को प्रस्तुत किया जा चुका है।”

उक्त पत्र में मंत्रालय को यह भी याद दिलाया गया है कि, “जैसा कि आप जानते हैं, देश के मछुआरों के लिए प्रधानमंत्री  सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) फिशकोफेड के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही है। पॉलिसी के नवीनीकरण की तारीख 1 जून 2020 थी। केंद्र से शेयर नहीं मिलने के कारण उपरोक्त पॉलिसी को अभी तक नवीनीकृत नहीं किया गया है।”

एक अन्य पत्र में लिखा है, “हमें अभी तक संलग्न सूची के अनुसार 44,39,160 मछुआरों को कवर करने के लिए 24 राज्यों और 7 संघ शासित प्रदेशों से आंकड़े मिल गये हैं।” आपसे अनुरोध है कि कृपया केंद्रीय शेयर को तुरंत जारी करें ताकि गरीब मछुआरों को योजना का लाभ मिल सके। चूंकि अब तक कवर प्रदान नहीं किया गया है, इसलिए नामांकित व्यक्ति हस्तक्षेप अवधि के दौरान बीमा लाभ से वंचित रहेंगे।”

अब, मंत्रालय ने फिशकोफेड को स्कीम के तहत राज्यों से प्राप्त धन को वापस करने को कहा है। फिशकोफेड के एमडी बीके मिश्र ने कहा कि वह अगले हफ्ते तक पैसा लौटाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि लगभग 1.2 करोड़ रुपये हो सकते हैं।

फिलहाल, फिशकॉफेड ने उक्त काम के लिए एक सब-एजेंट बनने के लिए आवेदन किया है। फिशकोफेड के एमडी मिश्र ने कहा कि उनका आवेदन एनएफडीबी के पास लंबित है।

फिशकोफेड वास्तव में मछुआरों का बीमा अच्छी तरह से कर रहा था, क्योंकि यह संवाददाता इस तथ्य का गवाह है कि फिशकोफेड का प्रबंधन दोनों पक्षों -मछुआरों और बीमा कंपनियों को अपने एजीएम में बुलाता था और कई मौकों पर इस मामले को वहीं के वहीं निपटा दिया जाता था।

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