कृषि-सहकारी संस्था नेफेड ने हाल ही में ग्लोबल टाइगर फोरम के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस एमओयू का उद्देश्य उन क्षेत्रों में एफपीओ विकसित करना है जहाँ मनुष्य और जानवर में अक्सर संघर्ष होता है। नेफेड के एमडी संजीव चड्ढा ने कहा कि हमारा लक्ष्य वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण, जंगलों में वन्यजीव के आस-पास रहने वाले लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करना है।
“भारतीयसहकारीता” को दिए गए एक विशेष साक्षात्कार में चड्ढा ने कहा कि प्रभावित क्षेत्रों में फसल पैटर्न बदलने के लिए नेफेड किसानों को प्रोत्साहित करेगा ताकि जंगली जानवरों से फसल को होने वाली क्षति से उन्हें बचाया जा सके। फसल पैटर्न में बदलाव से किसानों की आय बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि जीटीएफ हमें ऐसे क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करेगा।
‘समझौता ज्ञापन’ नेफेड के परामर्श से जीटीएफ द्वारा पहचाने गए बफर जोन में एफपीओ के गठन के लिए एक ढांचा प्रदान करेगा। इस पायलट प्रोजेक्ट को यूपी के पीलीभीत से शुरू किया जाएगा और उसके बाद हिमालयी क्षेत्रों से इसका विस्तार होगा, एमडी ने रेखांकित किया।
संक्षेप में एमओयू का उद्देश्य किसान उत्पादक संगठनों की स्थापना के माध्यम से सामुदायिक आजीविका और प्रबंधन को मजबूत करना है, जबकि चुनिंदा बिग कैट और वन्यजीव परिदृश्यों में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए पारस्परिक प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करना है।
एमओयू पर हस्ताक्षर 3 जून को दिल्ली के आश्रम चौक स्थित नेफेड मुख्यालय में एमडी की मौजूदगी में किया गया था। नेफेड की ओर से उन्नीकृष्ण कुरुप आर, जीएम ने हस्ताक्षर किए, जबकि जीटीएफ की ओर से डॉ राजेश गोपाल, महासचिव ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।
ग्लोबल टाइगर फोरम बाघों की रक्षा के लिये इच्छुक देशों द्वारा स्थापित एकमात्र अंतर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय निकाय है। जीटीएफ दुनिया के 13 टाइगर रेंज के देशों में वितरित बाघों की शेष 5 उप-प्रजातियों को बचाने पर केंद्रित है। इसका गठन 1993 में नई दिल्ली में बाघ संरक्षण पर आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की सिफारिशों पर किया गया था।
नेफेड जीटीएफ, संबंधित राज्य सरकार के विभागों और नेफेड/फीफा अधिकारियों के परामर्श से क्लस्टरों की पहचान करेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि किसी विशेष जिले के 10 से 20 निकटवर्ती गांवों में प्रति एफपीओ 500 से 1000 किसान/उत्पादकों का समूह मौजूद हो।
सीबीबीओ (?) द्वारा क्षेत्र में कृषि के साथ-साथ वन गतिविधि के कारण किसानों/उत्पादकों/ वनवासियों की प्रारंभिक स्थिति और मानव-वन्यजीव इंटरफेस का आकलन करने के लिए एक नैदानिक अध्ययन आयोजित किया जाएगा। यह अध्ययन आवश्यक संभावित हस्तक्षेपों की पहचान करने और विशिष्ट परियोजना कार्यान्वयन संदर्भ को समझने में मदद करेगा।