[यह लेख नेफकॉब के अध्यक्ष और सहकार भारती के संरक्षक ज्योतिंद्र भाई मेहता ने लिखा है। इसमें उन्होंने गुजरात के सहकारी आंदोलन और विशेष रूप से माधोपुर मर्केंटाइल को-ऑप. बैंक में हुए घोटाले के बाद सहकारी क्षेत्र की छवि को सुधारने में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की भूमिका को रेखांकित किया है। मेहता ने अपने और अमित शाह के संबंध का भी जिक्र किया है। इसे हम हूबहू अपने पाठकों को लिए नीचे पेश कर रहे हैं- संपादक]
हमारे देश के इतिहास में चार गुजराती महानुभावों ने केन्द्रीय गृहमंत्री के पद का निर्वहन किया। सर्वप्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के पश्चात् श्री अमितभाई शाह ऐसे गृहमंत्री हुए, जो गुजराती होने के उपरांत सरदार पटेल की ही भांति सहकारी गतिविधि से लगाव रखते हैं। सरदार अपने समय में भले ही सहकारी क्षेत्र से प्रत्यक्ष जुड़े न थे, परन्तु यह एक सुखद संयोग था कि उनकी प्रेरणा से उनके गृहनगर में देश की सबसे विशाल सहकारी दुग्ध गतिविधि का अमूल डेयरी के नाम से शुभारंभ हुआ था, जिससे आज भी समूचा विश्व प्रेरणा पा रहा है। बातचीत में बेबाक, स्पष्ट मत रखने वाले और शीघ्र निर्णय लेने वाले इन दोनों नेताओं ने केवल अपना ही नहीं, वरन् जिस पद पर कार्य किया, उसकी गरिमा बढ़ाई और देश का नाम भी रोशन किया।
श्री अमितभाई शाह ऊपर से नारियल की भांति सख्त, भीतर से नर्म व्यक्तित्व रखते हैं। ज़रूरत पड़ने पर सख्ती से काम लेने वाले अमितभाई को उनके अंदर की कोमलता सहकारी क्षेत्र की ओर खींच लायी है। छोटे तबके के लोग और किसानों के प्रति उनका झुकाव और उनके लिए कार्य करने की अमितभाई की भीतरी प्रकृति है।
सहकारिता के सैनिक के रूप में शुरू कर आज जिस स्थान पर पहुंचे हैं, उसमें उनकी लगन, परिश्रम और सभी कार्यकर्ताओं एवं सहकार्यकर्ताओं के साथ उनकी निकटता और संबंध बनाये रखने के गुण का बड़ा योगदान है। आज चोटी पर पहुँचने बाद भी उनकी यह आदत कायम है।
सहकारी क्षेत्र में उनके प्रवेश के समय उन्होंने उसकी बारीकी, तकनीकी जानकारी, आदि का गहन अध्ययन किया। यह आदत उन्हें सहकारी क्षेत्र में नेतृत्व के लिए काफी काम आई। अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक (एडीसी बैंक) में चुनाव लड़ने के समय वे काफी मेहनत करते थे। उस समय मैं राजकोट जिला सहकारी बैंक से चुनाव लड़ रहा था और वे अहमदाबाद से।
वर्ष 2000 में केवल 36 वर्ष की आयु में वे एडीसी बैंक के चेयरमेन बने। तब बैंक के हालात काफी खस्ता थे । लगातार छः वर्षों से वह बैंक घाटे में चल रहा था। उनके द्वारा कार्यभार संभालने के पूर्व बैंक में 20 करोड़ से अधिक का घाटा हुआ था। इसे घाटे से बैंक को बाहर निकालना उनके लिए कड़ी चुनौती थी। गवर्मेन्ट सिक्युरिटी और आर्थिक मामलों में उनकी गहरी पैठ थी। उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से बैंक को केवल दो वर्षों में 6.60 करोड़ के लाभ की स्थिति में पहुँचाया। उनकी कृतनिश्चयी प्रकृति और जुझारू व्यक्तित्व के कारण वे सहकारिता क्षेत्र के महायोद्धा साबित हुए। यही कारण रहा कि वे अथक परिश्रम और दृढ़निश्चय से सैनिक से सेनानायक के स्तर तक पहुँच पाए। उनके चेयरमेन के रूप में कार्यकाल के दौरान उन्होंने सहकारी क्षेत्र की सबसे छोटी इकाई, अर्थात् सेवा सहकारी मण्डली/क्रेडिट सोसायटी को आर्थिक समृद्धि दिलाने और उनके कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए उनके कामकाज का कम्प्युटराइज़ेशन करना सुनिश्चित किया, जिसके द्वारा सहकारी बैंकों में डिजिटल लिटरेसी के युग का प्रारंभ हुआ। यही नहीं, उन्होंने बैंक की ओर से सभी सोसायटी को निःशुल्क कम्प्युटर प्रदान करने की योजना का कार्यान्वयन किया।
वर्ष 2002 से 2019 के दौरान वे गुजरात स्टेट को-ओप. बैंक के निदेशक के रूप में भी सेवारत रहे। उस बैंक को भी एक नई ऊंचाई पर ले जाने का श्रेय उन्हें जाता है।
उनकी विचारधारा और लक्ष्य स्पष्ट थे। जिला सहकारी बैंक के चुनाव के दौरान वे कहते कि जब तक एडीसी बैंक के संचालन को हमारे हाथों में लेने का लक्ष्य प्राप्त न हो, हम चैन से नहीं बैठेंगे। आगे जाकर उन्होंने वह लक्ष्य पाया भी। अपनी सूझबूझ, लगन और वैचारिक स्पष्टता के चलते उन्होंने भ्रष्ट, सहकारिता के सिद्धांत के खिलाफ कार्य करने वाले और बिना कोई काम किये सालों तक कुर्सी पर चिपके हुए लोगों का सफाया किया।
मेरे लिए जीवन का यादगार अवसर रहा कि सन 2003 में मेरी पुत्री के विवाह के अवसर पर वे विशेष रूप से अहमदाबाद से राजकोट सपत्नीक पधारे थे। आते ही उन्होंने कहा था, “देखिये मामा, मैं नया कुर्ता सिलवा कर लाया हूँ। बेटी के विवाह में भोजन के दौरान मैं परोंसने का कार्य करूँगा ।” (अन्यों की भांति वे भी मुझे मामा कहकर बुलाते हैं) उनकी मैत्री, उनके बड़प्पन की यह एक बहुत बड़ी स्मृति है, मेरे लिए।
खानपान और स्वादिष्ट भोजन के विषय में उनकी जानकारी और पसंद उम्दा होती है। वे अपने साथियों के खाने-पीने का विशेष जतन करते हैं। मेरी अहमदाबाद मुलाकात पर वे मुझे नेचुरल आइसक्रीम खिलाने खास तौर से ले जाते थे। ये यादें आज हमारे दिलोदिमाग में धरोहर बनी हुई हैं।
मेरे पिताजी शेयर मार्केट के माहिर थे। अमितभाई उनसे मिलने आते, उनसे शेयरबाज़ार की चर्चा करते और उनसे टिप्स भी लेते रहते थे। कौन सी कम्पनी के शेयर लेने चाहिए, कब लेकर कब बेच देने चाहिए, कम्पनी के गुणदोष की चर्चा भी करते थे। उन्हें मेरे पिताजी का निवेश विषयक एक सिद्धांत बहुत अच्छा लगता था। “निवेश के मामले में धन, धैर्य और ध्यान अपना स्वयं का ही होना चाहिए।”
सोमनाथ महादेव में उनकी गहरी आस्था रही है। प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर वर्ष में 2-3 बार दर्शन के लिए वे नियमित रूप से जाते हैं। किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य के पूर्व और बड़ी उपलब्धि के पश्चात् वे सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने से आज भी नहीं चूकते हैं। उन्हें सोमनाथ महादेव मंदिर की एक विशेषता ने हमेशा अपनी ओर आकृष्ट किया हुआ है। सोमनाथ मंदिर, भारत में हिंदुत्व का ध्वजवाहक रहा है। उसी कारण से उसके उपर बर्बर विदेशी आततायीओं के द्वारा कई आक्रमण किये गये। नतीजा यह रहा कि आक्रमणकारी मिट गये, किन्तु, मंदिर अपनी जगह पर अभी भी बरकरार है। अमितभाई को इस बात ने अत्यंत प्रभावित किये रखा है।
किसी भी समस्या का हल निकालने की उनकी क्षमता अतुलनीय है। गुजरात में सहकारी क्षेत्र में माधवपुरा मर्कन्टाइल को-ओप. बैंक के घोटाले के समय उनकी इस शक्ति का मुझे रूबरू परिचय हुआ। समस्या के निराकरण हेतु हम दोनों सक्रिय थे। बारबार दिल्ली जाना, विभिन्न मंच पर उसके लिए प्रस्तुति करना, विभिन्न ऑथोरिटी से मिल कर उन्हें इसका निराकरण लाने हेतु निवेदन करना लगा रहता था। वे कभी थकते नहीं थे। बैंक की हालत अधिक खस्ता होने पर उक्त बैंक के प्रबंध निदेशक, नेपथ्य में चले जाने वाले थे। उसी दौरान ध्यान में आया कि माधवपुरा बैंक का गवर्मेन्ट सिक्युरिटी में निवेश है। तब अमितभाई ने सभी प्रतिभूतियों में उनसे हस्ताक्षर करवाकर बैंक के डिपोजिटर्स के लाभ में उनकी उचित व्यवस्था करवाना सुनिश्चित किया। उनकी यह दूरदर्शिता गुजरात में सहकारी बैंकों के अस्तित्व की लड़ाई में काफी सहायक सिद्ध हुई। माधवपुरा बैंक के डिपोजिटर्स के डिपोजिट की वापसी के लिए उनकी मेहनत की बदौलत डीआईसीजीसी से ₹400 करोड़ के दावे मंजूर हुए थे।
माधवपुरा बैंक के लिए सरकार से रिवाइवल पैकेज की योजना मंजूर कराने में उनकी महती भूमिका रही। उक्त रिवाइवल पैकेज को श्री मुकुंद जी चितले (सीए) ने तैयार किया था और उसको आखरी स्वरूप देने में नेफकॉब, श्री आर. एस. पटेल और श्री डी. कृष्णा ने योगदान दिया था। माधवपुरा रिवाइवल पैकेज के तहत गुजरात के सभी अर्बन सहकारी बैंकों से कुल मिलाकर ₹350 करोड़ एकत्रित करने की हम सबके सामने चुनौती थी, जोकि प्रत्येक बैंक से व्यक्तिगत संपर्क करके और उनके संचालकों से बात करके हम सभी ने पूरी की। इस अभियान में उनकी अगुआई के कारण लक्ष्य की प्राप्ति हमारे लिए आसान बनी। यह एक कीर्तिमान बना और सहकारी बैंकों के लिए इतिहास भी।
माधवपुरा बैंक प्रकरण के पूर्व गुजरात में 350 अर्बन सहकारी बैंक थे। माधवपुरा बैंक की विफलता के बाद समस्त गुजरात में लोगों का सहकारी बैंकों से विश्वास उठने लगा, जिसके फलस्वरूप काफी सहकारी बैंकों के बंद होने की नौबत आई थी। ऐसे कठिन समय में अमितभाई सहकारी क्षेत्र को बचाने लिए आगे आये। सक्षम नेतृत्व देते हुए गुजरात के सहकारी बैंकिंग क्षेत्र को अपने लगातार भगीरथ प्रयासों से उन्होंने नवजीवन दिया। राज्य सरकार, केंद्र सरकार, आरबीआई एवं डीआईसीजीसी सभी के साथ तालमेल मिलाते हुए उन्होंने लगभग २५० सहकारी बैंकों को नवजीवन दिलवाया।
एक उल्लेखनीय घटना यहाँ पर मैं शेयर करना चाहूँगा। माधवपुरा बैंक के एक डिपोज़िटर और विधवा महिला के एकमात्र युवा बेटे ने माधवपुरा हादसे के कारण आत्महत्या कर ली। यह खबर पाकर अमितभाई अंदर से हिल गये थे, उनका मन द्रवित हो उठा और माधवपुरा बैंक के डिपोज़िटर्स एवं निवेशकों के हितों एवं उनकी पूंजी बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हुए अपने प्रयासों को और भी बढ़ा दिया।
माधवपुरा बैंक प्रकरण के विषयान्तर्गत अप्रैल 2001 में मैं और अमितभाई मिलकर नेशनल फेडरेशन ऑफ़ अर्बन को-ओप बैंक्स एंड क्रेडिट सोसायटीज़ (नेफकॉब) की एक बोर्ड मिटिंग में विशेष निमंत्रित के तौर पर गये थे। हम दोनों ने गुजरात के सहकारी बैंकिंग क्षेत्र की ओर से प्रतिनिधित्व करते हुए अपना उद्बोधन भी दिया था। बाद में तो हम दोनों नेफकॉब के निदेशक के रूप में चुने गये थे। इसी विषय में हम दोनों उन दिनों भारतीय रिजर्व बैंक (मुंबई), सेंट्रल रजिस्ट्रार ऑफ़ को-ओपरेटिव्स (नई दिल्ली), वित्त मंत्रालय (नई दिल्ली), आदि से मिलने साथ-साथ जाते थे । इस मामले में हमने सभी दरवाज़े खटखटाए थे। हमने तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री श्री एल. के. आडवानी जी, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री केशुभाई पटेल, आरबीआई के गवर्नर श्री बिमल जालान, कई सांसद, आदि से रूबरू भेंट कर इस मामले में सकारात्मक समाधान की गुज़ारिश की थी।
गुजरात में उनके खिलाफ राजकीय कारणों से तत्कालीन केंद्र सरकार के द्वारा दायर झूठे मुकद्दमे के कारण उन्हें गुजरात के बाहर निष्कासित होना पड़ा। तब भी वे बिना विचलित हुए अपना धैर्य बनाये रखकर अपने जीवन की सबसे बड़ी कानूनी जंग जीते और विजेता के रूप में उन्होंने अपने गृहनगर में पुनरागमन किया। उन दिनों हमारी दिल्ली में भेंट होती रही, तब भी वे तनिक भी चिंतित नहीं थे। वे हरदम अपनी लड़ाई अपने तौर-तरीकों से लड़ते आये हैं और अंत में विजयश्री पायी है।
हमारे देश का सौभाग्य है कि ज़मीन पर रहकर कार्य करनेवाला व्यक्ति आज देश को मार्गदर्शन देने की भूमिका में है। मूक सेवक की भांति वे कार्य करेंगे और जताएंगे तक नहीं, यही उनकी खासियत है और यही उनका परिचय है। ईश्वर से उनकी दीर्घायुष एवं सुस्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं, ताकि वे दीर्घावधि तक राष्ट्र की सेवा कर पाएं। विशेष कर जब वे हाल ही में वर्तमान समय की सबसे खतरनाक महामारी कोरोना के विरुद्ध भी एक बड़ी जंग लड़कर सफल कोरोना योद्धा के रूप में फतह हासिल करके आये हैं, तब हमारी शुभकामनाओं का गुलदस्ता उन्हें अर्पित करते हैं।