नए सहकारिता मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभालने के बाद, अमित शाह ने पिछले सप्ताह शुक्रवार को मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ पहली बैठक की।
बैठक में नवनियुक्त राज्य मंत्री बीएल वर्मा के अलावा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी संजय अग्रवाल समेत अन्य लोगों ने भाग लिया। इस मौके पर शाह को मंत्रालय द्वारा की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों के बारे में जानकारी दी गई। एनसीडीसी के प्रबंध निदेशक संदीप नायक भी बैठक का हिस्सा थे।
सहकारी क्षेत्र में काम करने का अमित शाह के पास पुराना अनुभव है और इस क्षेत्र के लिए वो कोई अजनबी नहीं हैं। सहकारी क्षेत्र के साथ उनका जुड़ाव तब शुरू हुआ जब अमित शाह को अहमदाबाद जिला सहकारी (एडीसी) बैंक के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। नब्बे के दशक के मध्य में उन्होंने 36 साल की उम्र में इसका चुनाव जीता था।
इस बीच अगले दिन यानी शनिवार को शाह ने देश के दिग्गज सहकारी नेताओं से मुलाकात की। इस अवसर पर मंत्री ने पैक्स को मजबूत बनाने और बड़ी सहकारी समितियां और बड़ा होने का विचार रखा।
सहकारी नेताओं से बात करते हुए, शाह ने कहा कि पैक्स और एफपीओ के बीच समानता पर शीघ्र ही काम किया जाएगा। इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कि सरकार द्वारा एफपीओ को कई रियायतें दी जाती हैं, शाह ने कहा कि जो पैक्स उनका लाभ उठाने की स्थिति में हैं, उन्हें ऐसा करने की अनुमति दी जाएगी।
इफको, कृभको और अन्य जैसी बड़ी सहकारी समितियों का उल्लेख करते हुए, शाह ने कहा कि वह चाहते हैं कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में कंपनियों को मात दें। सहकारी समितियां किसानों के लिए जो कर सकती हैं वह कॉर्पोरेट क्षेत्र की कंपनियां नहीं कर सकती हैं।
शाह ने इफको और कृभको जैसी सहकारी संस्थाओं को हर संभव मदद की पेशकश की। हमारे किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज की जरूरत है और सहकारी समितियों के अलावा और कौन इस जरूरत को पूरा कर सकता है, उन्होंने कहा।
जहां देश के सहकारिता नेता पार्टी लाइन से हटकर नए सहकारिता मंत्री बनाने के विचार का जमकर स्वागत कर रहे हैं वहीं सीपीएम नेताओं ने इस कदम को देश के संघीय ढांचे पर हमला बताया है।
अशोक डबास जैसे अन्य सहकारी नेताओं का कहना है कि शाह के आने से सहकारी समितियों से गुंडा राज खत्म हो जाएगा। सहकारी नेताओं का एक वर्ग यह भी महसूस कर रहा है कि शाह अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत एक निर्णायक नेता हैं और वह उन लोगों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं जो बार-बार किसी न किसी तरह सहकारी समितियों की सत्ता हथिया लेते हैं।